वैसे तो मैं
हर डगर से पहुँच जाता हूँ
तेरे पास .
मगर यह
प्रेम डगर बहुत कठिन है.
तुम्ही आ जाओ न
ढलान से होकर.
डॉ. विजय प्रकाश शर्मा
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
बहुत सुंदर, बधाई आपको आदरणीय विजय जी
सुन्दर बहुत सुन्दर
शर्मा जी
आपका आभार प्रदर्शन मुझे भा गया i
चलो मै उसी राह पर फिर आ गया ii
धन्यवाद श्रीमन i
डॉ. गोपाल जी,
पहले तो मेरे आभार को स्वीकारो तुम
पीछे फिर राहों के फिसलन पे सोंचना.
पहले तो प्यार के फुहार को सम्हालो तुम
पीछे ढलान और फिसलन को जोड़ना.
सादर.
शर्मा जी
अपनी मुसीबत अगले के गले मढ़ दी i यह भी न सोचा ढलान फिसलन भरी हुयी तो ?
यहतो प्यार न हुआ -
पागल रे वह मिलता है कब ?
उसको तो देते ही है सब
आंसू के कण-कण से गिनकर
यह विश्व लिए है ऋण उधार i
आभार लक्ष्मण जी.
बहुत खूब आ0.
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