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जिसको तुमने खोया माना-डा० विजय शंकर

जिसको तुमने खोया माना है ,
उसको मैंने पाया जाना है ।
कुछ अटपटा , उलटा सा लगता है ,
पर जिन्दगीं तुमको मैंने ऐसा ही जाना है
जो खो गया , वो क्या ले गया ,
हाँ, अपनी स्मृतियाँ छोड़ गया ||
कुछ मीठी , कुछ तीखी,
पर जीने के लिए बहुत
काफी है , एक सहारे की तरह ||
एक गीत , एक कविता लिखता हूँ ,
जब तक लिखता हूँ , मेरा है , जब
छोड़ देता हूँ , पढ़ने वालों के लिए,
मेरा क्या रह गया उसमें , पर
खो दिया, क्या मैंने उसको ,
गर खो दिया , तो वही तो पाना है ,
जिसको औरों ने गवाना जाना है ||
---+------+-----+-----+---
मानव रह गया समेटते ,
कहाँ समेट पाया सारा ,
जब अपना खोया सारा
उस दिन पाया जग सारा ||

मौलिक एवं अप्रकाशित
डा० विजय शंकर

Views: 665

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 27, 2014 at 10:01am
आदरणीय डॉ o प्राची सिंह जी , रचना आपको पसंद आयी , उसके लिए और आपकी बधाइयों के किये बहुत बहुत धन्यवाद ।
आपने मेरी इस छोटी सी रचना को गीता के दर्शन से जोड़ दिया , कहाँ गीता और कंहाँ ये चार पंक्तियाँ । पर फिर सोंचता हूँ कि कर्म के मामले में गीता का आदर्श तो सर्वत्र लागू है , फिर यह रचना उससे इतर कैसे हो सकती है । अत: इसके लिए भी आपका बहुत बहुत आभार | सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 26, 2014 at 3:47pm

आ० डॉ० विजय शंकर जी 

जीवन में खोने-पाने के एहसास को लेकर कई कई दार्शनिकों नें बहुत बड़ी बड़ी बातें की ......हर इंसान का अनुभवों के सापेक्ष अपना ही मानना होता है..

लेकिन 'गीता' से जो दर्शन है.......// तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो? तुमने जो लिया यहीं से लिया , जो दिया यहीं पर दिया//... उसपर चिंतन बुद्धि मन भाव सभी को सदिश करता है.

.....हर आगत अनुभव में समृद्धि ही तो है और प्रयोजन पूर्ण होने के बाद विगत हो जाती है.

ऐसी ही समृद्ध वैचारिकता को स्वर देती आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारिये 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 22, 2014 at 10:38am
धन्यवाद , जितेंद्र जी , सादर।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2014 at 10:12am

जो खो गया , वो क्या ले गया ,
हाँ, अपनी स्मृतियाँ छोड़ गया ||
कुछ मीठी , कुछ तीखी,
पर जीने के लिए बहुत
काफी है , एक सहारे की तरह............बहुत सुंदर, सच! यादों के सहारे भी जीवन कट ही जाता है. हार्दिक बधाई आपको आदरणीय डा.विजय जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 21, 2014 at 8:15pm
आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी जी ,
पंक्तियाँ आपको पसंद आई , आपकी स्वीकरोक्ति के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2014 at 12:42pm

गर खो दिया , तो वही तो पाना है ,
जिसको औरों ने गवाना जाना है ||
---+------+-----+-----+---
मानव रह गया समेटते ,
कहाँ समेट पाया सारा ,
जब अपना खोया सारा
उस दिन पाया जग सारा ||गहन चिंतन के सागर में डुबकियाँ लगवाती आपकी ये रचना बहुत शानदार है ,आपको बहुत -बहुत बधाई आदरणीय 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 21, 2014 at 9:28am
आदरणीय मीना पाठक जी ,
आपको पसंद आई , धन्यवाद ,
सादर ।
Comment by Meena Pathak on June 21, 2014 at 8:58am

बहुत सुन्दर रचना .. सादर बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 20, 2014 at 1:10am
आ o मुकर्जी जी,
आपको रचना अच्छी लगी बहत बहुत धन्यवाद
सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 20, 2014 at 1:09am
आ o कल्पना रामानी जी,
आपको रचना अच्छी लगी बहत बहुत धन्यवाद
सादर .

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