बेटी बिन क्या हो सके, विकसित कभी समाज
दुनिया के उत्थान में, बेटी है वरदान,
बेटी जन्मी कोख से, करते कन्यादान
करते कन्यादान, प्रेम से उसे पढाए
उत्कट जीवन चाह, स्नेह दे मान बढाए
कह लक्ष्मण कविराय, यही विकास का जरिया
बेटी का उत्थान, तभी हो विकसित दुनिया ||
Comment
जी, यह चिंता का विषय मै मेरे लिए अधिक मानता हूँ और अधिक सावचेत रहने का प्रयास करूंगा | सादर
आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी, cause of concern की दुहाई आपके प्रति नहीं, बल्कि इस प्रस्तुति के पाठकों के लिए थी. आपकी स्वीकारोक्ति ने मेरे कहे को इज़्ज़त दी, आपने उबार लिया.
वैसे आप रचनाओं को प्रस्तुत करते समय तनिक सचेत रहें तो सारी परेशानी दूर हो गयी समझिये.
सादर
स्वीकारोक्ति -
No doubt Sir, it is a cause of concern. It is a weakness on my part. यह कमी मै अभी तक दूर नहीं कर पाया
और देर सवेर पता लगता है तब तक काला टीका लगा हो चुका होता है | और सचेत रहने का प्रयास करूंगा आदरणीय |
सादर
आप आदरणीय अपनी ही रचनाओं को नहीं देखते अब पता चला है. अन्यथा कोई कैसे संशोधन के लिए इतने समय तक किसी टिप्पणी की प्रतीक्षा कर सकता है ? ऐसे विन्दु तो रचनाओं को पोस्ट करते समय ही दिख जाते हैं.
मजा ये कि किसी टिप्पणीकार ने आपको इसकी ओर अगाह भी नहीं किया.. Cause of concern.. है न आदरणीय ?
आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी | आखिरी छंद पर ध्यान दिलाने के लिए आभार | संशोधित छंद
अवलोकनार्थ प्रस्तुत है -
दुनिया के उत्थान में, बेटी है वरदान,
बेटी जन्मी कोख से, करते कन्यादान
करते कन्यादान, प्रेम से उसे पढाए
उत्कट जीवन चाह, स्नेह दे मान बढाए
कह लक्ष्मण कविराय, यही विकास का जरिया
बेटी का उत्थान, तभी हो विकसित दुनिया |--------सादर
शुभ संदेश देती रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय.
अलबत्ता, आखिरी छन्द शास्त्रीय कुण्डलिया छन्द नहीं रह पाया है.
शुभ-शुभ
छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री जितेन्द्र "गीत" जी
कुंडलिया छंद सन्देश प्रद बन पायी, यह जानकार संतोष हुआ ! आपका तहे दिल से हार्दिक आभार श्री गिरिराज भंडारी जी
छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदनिया मीना पाठक जी
सुंदर संदेशप्रद रचना, बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी
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