पत्नी की म्रत्यु के २ वर्ष बाद ही बीमार रहने लगे मथुरा के संभ्रांत और संपन्न परिवारके श्री काशी प्रसाद जी का
८५ वर्ष की उम्र में देहांत हो गया | रात को शौक जताने आयेरिश्तेदार दुःख की घडी में सांत्वनाजता रहे थे, तभी
उस परिवार की बहुएँ खिलखिलाती हुईआई और सीधे बैठक के ऊपर वाले कमरे में चली गयी | बड़े बेटे ने झेपते
हुए बताया की येकिरायेदार का परिवार है | उसी समय नौकर आकर बोला“साहब जी, होटल से सब खाना खाकर
लौट आये है, और आपके लिए खाना पेक कराकर लाये है जल्दी आ जाना वर्ना खाना ठंडा हो जाएगा | सांत्वना
देने आये सभी रिश्तेदारों ने यह कहते हुए विदाई ली“प्रभु मृतक की आत्मा को शान्ति प्रदान करे”
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
लघु कथा का तथ्य पसंद कर सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी, सादर
टंकण त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाने के लिए आपका आभार
आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी, आपकी इस लघुकथा ने मुझे हैदराबाद प्रवास के दौरान अपने साथ हुए उस वाकये का स्मरण करा दिया जिसके प्रति इतने दिन हो गये किन्तु आजतक मैं संयत नहीं हो पाया हूँ. मेरी हालत भी तब आपकी कथा में वर्णित सांत्वना देने आये लोगों वाली हो गयी थी. यह दशा सामाजिक रूप से अचानक तथाकथित ऐडवांस हो गये परिवारों की हो गयी है. बहुओं का ज़िक्र कर आपने परिवारों में संवेदनहीनता के स्थायी हो जाने के भाव को साझा किया है जिसे भरपूर समर्थन घर-परिवारों के ही संवेदनशीलता ओढ़े किन्तु भावनात्मक रुप से पूरी तरह से असहाय हो चले बेटों से मिल रहा है. ऐसे परिवारों में बुजुर्गों की पारिवारिक, सामाजिक और मानसिक दशा इतनी दयनीय हो जाया करती है कि वे जीते जी न केवल हाशिये पर चले जाते हैं बल्कि उनकी ज़िन्दग़ी ही प्रश्नवाची दायरों में आ जाती है.
तभी तो, उनका जाना परिवार के लोगों के लिए ’मुक्ति का उत्सव’ न हो कर ’जान छूटी’ का उन्मादी संतोष हुआ करता है. इस लघुकथा के माध्यम से बहुत ही संवेदनशील मुद्दा साझा किया है आपने.
इस लघुकथा के तथ्य और ऐसी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय.
यह अवश्य है, कि कुछ टंकण त्रुटियाँ वाचन-प्रवाह में खलल डालती हैं. शोक शब्द शौक हो गया है जबकि दोनों के मायनों में जमीन आसमान का अंतर है.
ऐसी ही अन्यान्य और कमियाँ दुरुस्त की जा सकती हैं.
सादर
जी आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी, वास्तव में यह कहानी आँखों देखी घटना पर ही आधारित होने के कारण हकीकत ही है |
आपका हार्दिक आभार
आदरनीय लक्ष्मण भाई , आधुनिक समाज मे रिश्तों के घटते स्तर , भाव शून्य, बनावटी होते रिश्तों को आपने बहुत अच्छे से उजागर किया है ! आपको बहुत बधाइयाँ ॥
लघु कहानी के पर आपकी टिपण्णी से मान और बढ़ गया | आपका बहुत बहुत आभार श्री शुभ्रांशु पाण्डेय जी
लघु कथा पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया प्रियंका सिंह जी और सविता मिश्रा जी | सादर
लघु कथा पर उत्साहवर्धन करती आपकी टिपण्णी के लिए ह्रदय से हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी
आत्मीय सवेदना के क्षरण को लघु कथा में समझ कहानी पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री (डॉ) गोपाल नारायण
श्रीवास्तव जी | सादर
लघु कथा पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री शुशील सरना जी, श्री जितेन्द्र "गीत" जी. और श्री बृजेश नीरज जी
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