ज़िन्दगी की ढिबरी
डूबती संध्याओं की उदास झुकी पलकों में
एक रिश्ते-विशेष के साँवलेपन की झलक
बरतन पर लगी नई कलाई की तरह
हर सुबह, हर शाम और रात पर चढ़ रही, मानो
गम्भीर उदास सियाह अन्तर्गुहाओं में व्याकुल
मूक अन्तरात्मा दुर्दांत मानव-प्रसंगों को तोल रही
रिश्ते के साँवलेपन में समाया वह दानवी दर्द
अतीत की आँखों से टपक-टपक कर अब
क्यूँ है मेरी रुँधी हुई आवाज़ में छलक रहा
बहा होगा आज फिर से ज़रूर घड़े के बाहर
हृदय में सोई व्यथित वेदना का अन्तर्प्रवाह
सोचते घबरा जाता है भयभीत अंत:स्वर मेरा
अतीत के क्रूरतम कटुतम आत्मीय अनुभव
साक्षी वह मेरी जीवनावस्था के प्रमाण अनुक्षण
उनको भुला देना, मिटा देना, है समयानुकूल, पर
स्नेह के कठिन निषक्रम मार्गों को अनुभूत करती
निज से लड़ रही लहर एक दर्द की दोड़ जाती है
छा जाती है सांझ संकल्पों पर, लिए उदासी का रंग
हमारे बचपन के स्नेह के रहस्य को छिपाय
किराये के उन सुकुमार स्वपनों की आत्मा,
द्रुतगामी समय पर फैलता घुँघराला कुहरा ...
ज़िन्दगी की ढिबरी में अब तेल कम बचा है
उखड़ी ज़िन्दगी के उदयास्त से उद्विग्न
मेरे कन्धे पर यूँ सिर टेक कर प्रिय
संतप्त, तुम कब तक रोओगी ?
---------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//अनुभूतियों को सस्वर करती आपकी अभिव्यक्तियाँ अपनी नैसर्गिक टीस से पाठक के मन को कचोटती हैं, आदरणीय.
यही ज़िन्दा टीस आपकी रचनाओं का संबल है। //
आपके अंतस से उदगारित स्नेहसिक्त अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति और सराहना के लिए मैं आभारी हूँ, आदरणीय सौरभ जी।
//
बड़ी ही हृदय स्पर्शी रचना की है आपने।
आपकी अद्वितीय कल्पना और लेखनी को प्रणाम है।
इस गगम्भीर अभिव्यक्ति के लिए आपको हार्दिक बधाई।//
इतनी अलंकारिक सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया विन्दु जी।
निर्दोष और सात्विक भावनाएँ आत्मीय स्पर्शों से आजीवन मुलायम होती रहती है. भावनाएँ जीवन के लगातार रीतते पलों की मुखापेक्षी नहीं हुआ करती. तभी तो वे प्रेम निवेदन की नित नवीन अनुभूतियों को इतनी गहराई से जीती हैं. उन्हीं अनुभूतियों को सस्वर करती आपकी अभिव्यक्तियाँ अपनी नैसर्गिक टीस से पाठक के मन को कचोटती हैं, आदरणीय.
यही ज़िन्दा टीस आपकी रचनाओं का संबल है.
एक बार फिर से सात्विक छुअन ने अदम्य विश्वास से अपने होंठ धरे हैं. एक बार फिर शब्द-शब्द प्रकम्पित हो प्राणवान हो चला है. मन शांत है.
आभार, आदरणीय..
//जीवन में प्रेम और प्रेम में विरह के एहसास और उन एहसासों में सिमटती ज़िन्दगी ..... आपकी ढिबरी का तेल कभी कम न पड़े यही दुआ करुँगी ....आपकी रचनाएँ मन झंझोर देती है ..... क्या कहूँ बस .//
इस प्रकार इतना मान देने के लिए हर्दयतल से आपका आभार, आदरणीया प्रियंका जी।
कई बार मैंने देखा है आदरणीय कि रचना मे उन्नत शब्दों और उच्च स्तरीय बिम्बों के साथ गहन प्रस्तुति और भावों की सघनता में सामंजस्य बना पाना आसान नहीं होता।
अक्सर रचनाओं में मौलिकता प्रभावित हो जाती है लेकिन आपकी रचनाओं में ऐसा नहीं होता। रचना के सघन भाव सदैव पाठक को ठहराव देते हैं।
बड़ी ही हृदय स्पर्शी रचना की है आपने।
आपकी अद्वितीय कल्पना और लेखनी को प्रणाम है।
इस गगम्भीर अभिव्यक्ति के लिए आपको हार्दिक बधाई।
सादरर
हमारे बचपन के स्नेह के रहस्य को छिपाय
किराये के उन सुकुमार स्वपनों की आत्मा,
द्रुतगामी समय पर फैलता घुँघराला कुहरा ...
ज़िन्दगी की ढिबरी में अब तेल कम बचा है
उखड़ी ज़िन्दगी के उदयास्त से उद्विग्न
मेरे कन्धे पर यूँ सिर टेक कर प्रिय
संतप्त, तुम कब तक रोओगी ?
आहा सर ....क्या कहूँ ....अब तक ५-से ७ बार पढ़ चुकी हूँ फिर भी नहीं समझ पा रही क्या कहूँ ....जीवन में प्रेम और प्रेम में विरह के एहसास और उन एहसासों में सिमटती ज़िन्दगी ..... आपकी ढिबरी का तेल कभी कम न पड़े यही दुआ करुँगी ....आपकी रचनाएँ मन झंझोर देती है ..... क्या कहूँ बस .... नमन आपके लेखन और आपकी सोच को ....नमन ....
//अति गहन भावों का एक और सृजन//
आदरणीय विजय मिश्र जी, रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।
//बहुत ही सुंदर मनोभाव के साथ सुंदर रचना//
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया अन्न्पूर्णा जी।
//ज़िन्दगी की ढिबरी के पूरा तेल होने से लेकर अब कम तेल बचने तक की अमिट प्रेम की विरह गाथा को लाजवाब शब्द मिले हैं //
रचना के मर्म तक पहुँच कर उसे सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी।
//अनूठी रचना.....यह आप की हो सकती है//
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कुंती जी।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online