काल-धारा
मेरा स्नेह तुम्हारी ज़िन्दगी के पन्ने पर देर तक
स्वयं-सिद्ध, अनुबद्ध
हलके-से हाशिये-सा रहा यह ज़ाहिर है
ज़ाहिर यह भी कि जब कभी
अपने ही अनुभवों के भावों के घावों को
विषमतायों से विवश तुम चाह कर भी
छिपा न सकी
हाशिये को मिटा न सकी
मिटाने के असफ़ल प्रयास में तुम
घुल-घुल कर, मिट-मिट कर
ऐंठन में हर-बार कुछ और
स्वयं ही टूटती-सी गई
टूटने और मिटने के इस क्रम में
हाशिये में कभी झोल-सा पड़ा दर्द का
कभी उसकी पारमिता,
उसकी दृढ़ता, उसकी गहराई
बढ़ती निखरती तुम्हारे अस्तित्व के गिर्द
ज़िद्दी बेल-सी लिपटती चली गई
समय की थिरकती-सिहरती थपथपी
अदृश्य तुम्हारे अश्रुओं की कँपकँपी ...
मानव-सम्बन्ध के सहज आनंद की
पूजा के दिय की लौ -सी
अरुणायित शोभा ...
यह हाशिया भी अब वही हाशिया न रहा
मिटाय-न-मिटते जामुन के पक्के
रंग-से-रंगे कपड़े-सा
तुम्हारे शुद्धतम आँचल-सा विशुद्ध स्नेह मेरा
अब हृदय-प्रकाश तुम्हारा बना, और
गहन विश्वास की तहों में स्नेह तुम्हारा
मेरे हृदय की कमल-पँखुरी में है समाया
आत्माओं में बहती-सी लगती है नई उमंग
सोचता हूँ यह नियति की अनुभूति है या
है यह बहती सुखप्रद प्रतिपल
असामान्य जगत-काल-धारा...
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//अंतर्मन की शुद्ध मनोदशा को शाब्दिक करता आपका प्रयास अभिभूत करता है//
यह शब्द किसी भी रचनाकार के लिए अमूल्य हैं। रचना की सराहना द्वारा मुझको
इतना मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ भाई।
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय श्याम वर्मा जी।
//अगले के हृदय की वेदना का इतनी सूक्ष्मता से अवलोकन...फिर उसका वर्णन,इतनी गहराई से,इतने प्रभावी बिम्बों के माध्यम//
//आपकी रचना के कुछ शब्द,बिम्ब और भाव दिमाग़ में तैर रहे थे...मन किया पुनः रसास्वादन करूं..इसलिए पुनः ब्लॉग पर आयी।//
सर्वप्रथम आपका रचना के मर्म को सूक्षमता से जानना, और फिर इस रचना को पढ़ने बार-बार आना.........इतना मान !
आपका हृदयतल से आभार, आदरणीया विन्दु जी। सुखी रहें।
//सुन्दर और गहन भाव ..जिंदगी को खूबसूरत शब्दों से बाँधा है आप ने//
यह कह कर रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र जी।
//आपको पढ़ना ही खुद में एक नया अनुभव है ....एक एक एहसास लफ़्ज़ों में ऐसे उकेरा है अपने जैसे .....दीये में एक एक बूंद जलती है रौशनी के लिए//
आदरणीया प्रियंका जी, आप सदैव मेरी रचनाओं को इतना मान देती हैं, आशा है कि यही स्नेह बनाए रखेंगी। हृदयतल से आपका आभार।
//गहन आंतरिक प्रेम की अनुभूतियों को प्रकट करती आपकी सुन्दर अभिव्यक्ति//
रचना को इस प्रकार मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी।
//मन को गहरे छूती रचना//
रचना की भावनाओं को छूने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।
//अटूट विशासों के बंधी डोर की सुंदर रचना //
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।
आशा है स्नेह बनाए रखेंगे।
//बहुत सुन्दर.. गहन भाव धारण किये प्रस्तुति//
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नीरज जी।
//शब्दों और सुंदर भावों को बहुत ही खूबसूरती से संजोया//
इस मान के लिए मैं आपका आभारी हूँ, आदरणीय जितेन्द्र जी। आशा है स्नेह बनाए रखेंगे।
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