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तरही ग़ज़ल //अभिनव अरुण- बारिशों का ख्व़ाब था..

ग़ज़ल -

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

 

मौत का आना है तय उससे बचा कोई नहीं |

काम आ पायेगी अब शायद दुआ कोई नहीं |

 

अब बुज़ुर्गों के लिए रोटी दवा दालान में ,

घर के लोगों का अब उनसे वास्ता कोई नहीं |

 

है पते वालों की ख़ातिर आपकी हर योजना ,

वो कहाँ जाएँ कहो जिनका पता कोई नहीं |

 

कौन अब ताउम्र जीता है किसी के वास्ते ,

इश्क़ फरमाते हैं सब पर बावफ़ा कोई नहीं |

 

मुल्क की गठरी नहीं इस रास्ते महफ़ूज़ है ,

राहजन चारों तरफ हैं रहनुमा कोई नहीं |

 

सत्य का परचम लिए तनहा डटा मैदान में ,

मेरे पीछे तो यहाँ अब तक चला कोई नहीं |

 

देखिये मंचों पे उनको पहली सफ़ में बैठते

जिनकी ग़ज़लों में रदीफ़ों काफ़िया कोई नहीं |

 

बंद कमरों की सियासत उनको ले डूबी मियाँ ,

बारिशों का ख्व़ाब था छाई घटा कोई नहीं |

* सर्वथा मौलिक अप्रकाशित .

- अभिनव अरुण .

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on June 25, 2014 at 9:13pm
आ. श्री शिज्जू जी दिली शुक्रिया ग़ज़ल पसंद करने के लिए
Comment by Abhinav Arun on June 25, 2014 at 9:12pm
आ.श्री गिरिराज जी आपका उत्साहजनक प्रेरक वक्तव्य बेहतर कहने को मेरी रहनुमाई करेगा !!
Comment by Abhinav Arun on June 25, 2014 at 9:11pm
आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेयी जी हार्दिक रूप से आभार !
Comment by annapurna bajpai on June 25, 2014 at 6:17pm

बहुत सुंदर गजल हुई है , बहुत बधाई आपको , आ0 अभिनव जी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 24, 2014 at 4:56pm

है पते वालों की ख़ातिर आपकी हर योजना ,

वो कहाँ जाएँ कहो जिनका पता कोई नहीं |

 

कौन अब ताउम्र जीता है किसी के वास्ते ,

इश्क़ फरमाते हैं सब पर बावफ़ा कोई नहीं | -- आदरनीय अभिनव अरुण भाई बहुत खूब सूरत ग़ज़ल हुई है , ग़ज़ल के लिये और इन अशाअर के लिये बहुत बहुत बधाई ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 24, 2014 at 8:28am

//कौन अब ताउम्र जीता है किसी के वास्ते ,
इश्क़ फरमाते हैं सब पर बावफ़ा कोई नहीं
बंद कमरों की सियासत उनको ले डूबी मियाँ ,
बारिशों का ख्व़ाब था छाई घटा कोई नहीं//   वाह बहुत खूब

आदरणीय अभिनव अरुण जी ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें।

Comment by coontee mukerji on June 24, 2014 at 1:20am

सत्य का परचम लिए तनहा डटा मैदान में ,

मेरे पीछे तो यहाँ अब तक चला कोई नहीं |....बहुत सुंदर.....तुम अकेले चलते चलो....चलना तुम्हारा काम...सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2014 at 9:11pm

अब बुज़ुर्गों के लिए रोटी दवा दालान में ,

घर के लोगों का अब उनसे वास्ता कोई नहीं |------एक कडवा सच 

 

देखिये मंचों पे उनको पहली सफ़ में बैठते

जिनकी ग़ज़लों में रदीफ़ों काफ़िया कोई नहीं |----अच्छी चुटकी ली है 

 

बंद कमरों की सियासत उनको ले डूबी मियाँ ,

बारिशों का ख्व़ाब था छाई घटा कोई नहीं |-----शानदार 

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है अभिनव जी ,दिली बधाई कबूलें 

 

Comment by Abhinav Arun on June 23, 2014 at 7:16pm
आदरणीय श्री Sushil Sarna जी अशार पसंद आये कहना सार्थक हुआ , शुक्रिया दिल से !!
Comment by Abhinav Arun on June 23, 2014 at 7:15pm
आदरणीय श्री डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ग़ज़ल के अनुमोदन के लिए आभार !!

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