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हुई न खत्म मेरी दास्ताने ग़म यारो
हरेक लफ़्ज़ अभी अश्क़ से है नम यारो
है ज़िन्दगी तो यहाँ मुश्किलात भी होंगी
चलो जियें इसे हर सांस दम ब दम यारो
इधर चराग का जलना उधर हवा की रौ
ये मेरा ज़ोरे जिगर और वो सितम यारो
लिबास ही से न होगा कभी नुमायाँ सच
सफ़ेदपोश तो लगते हैं मुह्तरम यारो
रहा न बस कोई तहरीर पर किसी का अब
चलाना भूल गईं उँगलियाँ क़लम यारो
मैं रफ़्ता- रफ़्ता उबरने लगा हवादिस से
कि हौसला मेरे दिल में कहाँ है कम यारो
मुह्तरम =सम्माननीय
तहरीर =लिखावट
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
हरेक शे र में मुझको लगे है दम यारों
हरूफ अब मुझे लगने लगे हैं कम यारों
सच है भाई शिज्जू , बहुत लाजवाब गज़ल कही , सराहना के लिये शब्द नही मिल पाये । मेरी निगाह मे अब तक की पढी आपकी गज़लों में ऊपर के तीन मे ये ग़ज़ल लगी । दुआ करता हूँ , ईश्वर आपकी कही ऐसी और ग़ज़लें पढवायें ॥ दिली बधाइयाँ ॥
आदरणीया कुन्ती जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीया राजेश दीदी आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय अभिनव अरुण जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय सुशील सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर लगातार तीसरी बार रचना आपकी सर्वप्रथम प्रतिक्रिया मेरा उत्साह बढ़ा है, रचना को समय देने के लिये एवं सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया। स्नेह यूँ ही बनाये रखें।
सादर,
मैं रफ़्ता- रफ़्ता उबरने लगा हवादिस से
कि हौसला मेरे दिल में कहाँ है कम यारो....बहुत खूब.
इधर चराग का जलना उधर हवा की रौ
ये मेरा ज़ोरे जिगर और वो सितम यारो-----बेहद खूबसूरत अशआर
मैं रफ़्ता- रफ़्ता उबरने लगा हवादिस से
कि हौसला मेरे दिल में कहाँ है कम यारो-----गजब के आत्मविश्वास से भरा
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है शिज्जू भाई ,दिली दाद कबूलें
हुई न खत्म मेरी दास्ताने ग़म यारो
हरेक लफ़्ज़ अभी अश्क़ से है नम यारो
है ज़िन्दगी तो यहाँ मुश्किलात भी होंगी
चलो जियें इसे हर सांस दम ब दम यारो ........वाआआआआआआअह बेहद खूबसूरत अल्फ़ाज़ों से सजी इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय शिज्जु शकूर जी
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