सावन का था महीना ......
वो आ के छम्म से बैठी मेरे करीब ऐसे
बरसी हो बादलों से सावन की बूंदें जैसे
सावन का था महीना
मदहोश थी ...हसीना
गालों पे .लग रही थी
हर बूँद ..इक नगीना
आँचल निचोड़ा उसने ..मेरे करीब ऐसे
बरसी हो बादलों से ख़्वाबों की बूंदें जैसे
पलकें झुकी हुई थीं
सांसें ..रुकी हुई थीं
लब थरथरा .रहे थे
पायल थकी हुई थी
इक इक कदम वो मेरे आई करीब ऐसे
बादे सबा को छू के ...आई हों बूंदें जैसे
वो भीगी प्रेम दीवानी
हो जैसे ..प्रेम कहनी
रुखसार पे ...थे गेसू
जैसे साँझ हो सुहानी
आगोश में शरारा ....वो आया करीब ऐसे
सिमटी हों सांसें उसकी बाहों में मेरी जैसे
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया कांता रॉय जी प्रस्तुति पर आपके द्वारा प्रदत्त आत्मीय का हार्दिक आभार। अचरज है जिसे मैं भूल चूका उसे आपने याद दिला दिया। ये वो प्रस्तुति है जिसे मैंने स्कूटर पर आफिस जाते समय तैयार किया था। इसकी धुन भी कव्वाली शैली में बड़ी प्यारी बनी थी। जो यहां मुमकिन नहीं है। ब्लॉग के इस पृष्ठ तक जाने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया।
वो आ के छम्म से बैठी मेरे करीब ऐसे
बरसी हो बादलों से सावन की बूंदें जैसे----- इस भाव को शायद आपसे बेहतर कोई नहीं लिख सकता है आदरणीय सुशील सरना जी , बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय JAWAHAR LAL SINGH रचना पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार
आँचल निचोड़ा उसने ..मेरे करीब ऐसे
बरसी हो बादलों से ख़्वाबों की बूंदें जैसे
बहुत खूब!
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार
डॉ आशुतोष मिश्रा जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार
आदरणीय सुशील भाई , सुन्दर श्रावनी शृंगार गीत रचना के लिये बधाई ॥
सावन का था महीना
मदहोश थी ...हसीना
गालों पे .लग रही थी
हर बूँद ..इक नगीना....क्या बात है
मादकता में डुबोने बाली इस रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रचना पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार
आदरणीया सावित्री राठौड़ जी रचना पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार
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