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है सफ़र में काफ़िला पर रहनुमा कोई नहीं-ग़ज़ल

2122- 2122- 2122- 212

नक्श भी कोई नहीं औ' रास्ता कोई नहीं

है सफ़र में काफ़िला पर रहनुमा कोई नहीं

 

भीड़ चेहरे सिर्फ़ कहने के लिये मौजूद हैं

घूम के देखा मगर मुझको मिला कोई नहीं

 

आशनाई बस ज़रूरत की है रिश्ते नाम के

इनका अब जज़्बात से ही वास्ता कोई नहीं

 

नफ़रतों के ज़ह्र में डूबी ज़बाँ के तीर का

आदमीयत है निशाना दूसरा कोई नहीं

 

सिर्फ़ बातों से बहल जायें यहाँ कुछ लोग तो

सच सुने कोई नहीं सच देखता कोई नहीं

 

साँस में भरता धुआँ काली कबा है गर्द से

उसपे यारो ये सितम पत्ता हरा कोई नहीं

 

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 8:25am

आदरणीय सुशील सरना सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 8:25am

आदरणीया राजेश दीदी आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 8:24am

आदरणीय मदनमोहन सक्सेना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 8:24am

आदरणीय नरेन्द्र सिंह जी आपका हार्दिक आभार

Comment by Sushil Sarna on July 9, 2014 at 7:11pm

नक्श भी कोई नहीं औ' रास्ता कोई नहीं
है सफ़र में काफ़िला पर रहनुमा कोई नहीं

वाआआआआअह आदरणीय शिज्जु शकूर भाई बहुत ही सुंदर मतले से ग़ज़ल का आगाज़ … हर शेर की अपनी जुबां … … इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।


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Comment by rajesh kumari on July 9, 2014 at 5:52pm

कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बाते हैं बातों का क्या ....ये गीत जहन में आया ये ग़ज़ल पढ़ते ही ,हर शेर दिल पर वार करता है कड़वी सच्चाई से रूबरू कराता है ,बहुत- बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर शिज्जू भैया 

Comment by Madan Mohan saxena on July 9, 2014 at 3:52pm

सिर्फ़ बातों से बहल जायें यहाँ कुछ लोग तो
सच सुने कोई नहीं सच देखता कोई नहीं
बहुत सुन्दर गजल ,हार्दिक बधाई


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 9, 2014 at 10:51am

आदरणीय गिरिराज सर रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 9, 2014 at 10:50am

आदरणीय गुमनाम जी आपका हार्दिक आभार


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Comment by गिरिराज भंडारी on July 9, 2014 at 10:16am

आदरनीय शिज्जु भाई , ज़िन्दगी की सच्चाइयाँ बयान करती आपकी गज़ल बहुत पसन्द आयी , सारे अशआर खूब कहे हैं ॥ आपको मेरी दिली बधाइयाँ ॥

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