22- 22- 22- 22- 22- 2
दिल को अब के शायद चैन मयस्सर हो
तेरी क़ुर्बत में जब दिन रात गुज़र हो
मेरी बातों का सीधा दिल पे असर हो
गर सुनने का इक तेरे पास हुनर हो
बरसें जब सर्द फुहारें रिमझिम-रिमझिम
क्या कहना क्या खूब सुहाना मंज़र हो
इक रौ में बहते हैं चश्मे तो भी क्या
बारिश सा बरसो तो ये आलम तर हो
मज़्मून लगे जैसे हो इक आईना
तुम एक सुखनवर हो या शीशागर हो
सन्नाटे में कोई सरगोशी सी है
जैसे गहरी साँसो का मद्धम स्वर हो
-(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
//जब भी बरसें सर्द फुहारें फ़ाहों में
फिर क्या कहना खूब सुहाना मंजर हो
किन्तु, यह कोई सुझाव नहीं है//
यद्यपि ये सुझाव नहीं है लेकिन जो भी है बेमिसाल है ग़ज़ल में ग़ज़लियत न हो कैसी ग़ज़ल इससे पहले आपने मेरी अन्य रचनाओं की खूब तारीफ की है इस रचना में ज़रूर कमी होगी अन्यथा यहाँ भी आप तारीफ करते आपका बहुत बहुत शुक्रिया इसी तरह नज़रे इनायत होती रहे। जल्द ही इस रचना को संशोधित करके फिर पोस्ट करता हूँ ।
इस बहर की अहम खुसूसियत इसमें सधे मिसरों के धाराप्रवाह वाचन से उभर कर आती है. उस हिसाब से इस ग़ज़ल को प्रथम दृष्ट्या कुछ और बाँधने की ज़रूरत प्रतीत हो रही है, भाई शिज्जूजी.
अब इसी शेर को लें -
बरसें जब सर्द फुहारें रिमझिम-रिमझिम
क्या कहना क्या खूब सुहाना मंज़र हो
इसे यों किया जाय तो -
जब भी बरसें सर्द फुहारें फ़ाहों में
फिर क्या कहना खूब सुहाना मंजर हो
किन्तु, यह कोई सुझाव नहीं है. बस आपसी समझ की साझेदारी है. विश्वास है, आप मेरे कहे को अन्यथा न लेंगे. मगर ये जरूर कहूँगा कि इस ग़ज़ल के कई अश’आर अभी और ऊँची उड़ान पे जाना चाहते हैं.
सन्नाटे में कोई सरगोशी सी है
जैसे गहरी साँसो का मद्धम स्वर हो
वल्लाह !! .. उम्दा खयाल !!!
शुभ-शुभ
आदरणीय विजय निकोर सर आपका हार्दिक आभार
गज़ल बहुत अच्छी बनी है... दाद देता हूँ ... ऐसे ही लिखते रहें
आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया राजेश दीदी आपका हार्दिक आभार
बहुत ही सुंदर गजल आदरणीय शिज्जू जी
मेरी बातों का सीधा दिल पे असर हो
गर सुनने का इक तेरे पास हुनर हो..............खुबसूरत, दिली बधाइयाँ लीजियेगा
शिज्जू भैया ,बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई सभी अशआर एक से बढ़ के एक हैं |आप ऊपर मात्रा मापनी में जहाँ छूट ले सकते हैं उसे ओब्लिक करके इंगित कर देते तो नव ग़ज़ल कारों के समझने के लिए आसान हो जाता | आपको दिली दाद इस शानदार ग़ज़ल पर|
आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया रचना को समय देने के लिये
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