2122 2122 2122
नाम अपना चल बदल के देखते हैं
घेरे से बाहर निकल के देखते हैं
चाँद सुनता हूँ कि थोड़ा पास आया
आ ज़रा फिर से उछल के देखते हैं
पैरों को मज़बूतियाँ भी चाहिये कुछ
चल ज़रा काटों पे चल के देखते हैं
रोशनी की चाह में तो हैं बहुत, पर
कितने हैं ? जो ख़ुद भी जल के देखते हैं
कुछ मज़ा फिसलन में है,गर है यक़ीं तो
हम कभी यूँ ही फिसल के देखते हैं
ख़्वाब शायद हो सुनहरा, क़िस्मतों में
रोज़ करवट हम बदल के देखते हैं
बह के जाने का कहाँ तक दायरा है
आ किसी दिन हम पिघल के देखते हैं
क्या ख़रीदें , हम बजारों में हमेशा
जेब खाली , बस टहल के देखते हैं
बचपने की फिर उन्हीं खुशियों की खातिर
हम भी बच्चों सा मचल के देखते हैं
आधुनिकता क्या बला है जान तो लें
एक दिन आ , हम भी ढल के देखते हैं
शर्म जैसी बात बरसों से नहीं पर
आज भी ‘ उनको ’ सँभल के देखते हैं
************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
Comment
आपही का आपही को समर्पित .. .
सादर
आदरनीय सौरभ भाई , अपना किया भुगतने के लिये हमेशा तैयार हूँ ॥ क्षमा चाहूंगा अब की आपको वो संतुष्टि नही दे पाया ॥ आगे प्रयास रत रहूंगा ॥
इज़ाजत हो तो आपका सुझाया मतला मै ले लूँ ?
यथोचित सलाह के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय गिरिराज भाई, इस ग़ज़ल पर सही कहूँ ? .. वो मजा नहीं आया जैसा कि आपकी पिछली कुछ ग़ज़लों में मैंने लिया है.
कुल मिला कर आदत खराब आपने की है, तो भुगतेगा कौन ? .. सो, भुगतिये. .. :-)))
भाई, ऐसा लगता है, यह ग़ज़ल पूरी पकने के पहले ही उतार ली गयी बिरयानी की तरह सामने आ गयी है. जबकि इसे मद्धिम आँच पर कुछ देर और पकना था.
देखिये न, जान तो है मतले में. मगर मैं इस निहायत ज़िन्दा सोच को कुछ और आयाम देने की कोशिश करता.
केन्द्र अब अपना बदल के देखते हैं
वृत्त से बाहर निकल के देखते हैं.. .. हा हा हा हा... :-)))
बहरहाल, प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय जवाहर भाई , ग़ज़ल की रारीफ के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥
एक से बढ़कर एक शेर आदरणीय गिरिराज भडारी साहब!
आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी सराहना ने गज़ल कहना सार्थक कर दिया ॥ उत्साह वर्ध न के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय जितेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया ॥
सभी शेर एक से एक बढ़ कर... हर शेर पर दाद , भाई गिरिराज जी।
बहुत ही खुबसूरत गजल आदरणीय गिरिराज जी, एक एक शेर बहुत खूब हुआ . दिली बधाइयाँ लीजियेगा
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online