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Zaif
  • Male
  • Uttarakhand
  • India
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Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में राख होता है हाड़-माँस का ढाँचा आदमी को जलने में देर कितनी लगती है माननी ही पड़ती है हर ज़िद अपने बच्चे को बाप हूँ पिघलने में देर कितनी लगती है सर…"
19 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164
"आ. नादिर जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। सुझाव भी अच्छे हैं। सादर।"
Feb 23
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164
"आ. Aazi जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। थोड़ी बहुत टंकण त्रुटियाँ हैं, दुरुस्त कर लें। सादर।"
Feb 23
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164
"आ. जयनित जी, ख़ूब ग़ज़ल के शे'र हुए हैं। चंद मात्राओं की त्रुटियों में ध्यान देने की ज़रूरत है। सादर।"
Feb 23
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164
"आ. अजय जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है, इस्लाह के बाद दुरुस्त हो जाएगी। सादर।"
Feb 23
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164
"आ. Chetan जी,  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। गुणीजन की इस्लाह महत्वपूर्ण रहेगी। सादर।"
Feb 23
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164
"आ. Sanjay जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। सुझावों से और निखर जाएगी। सादर।"
Feb 23
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164
"आ. Richa जी, ख़ूब ग़ज़ल हुई हैं। सुझाव भी बेहतरीन हैं। Nilesh जी से सहमत हूँ, मलते में मज़ार 'पर' उचित रहेगा। सादर।"
Feb 23
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164
"ख़ूब ग़ज़ल हुई है, आ. Amit जी। बधाई, सादर।"
Feb 23
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164
"ख़ूब ग़ज़ल हुई है, आ. Mahendra जी, सुझाव भी क़ाबिल-तारीफ़ हैं । सादर।"
Feb 23
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164
"ख़ूब ग़ज़ल हुई है, आ. शकूर जी, सुझाव उम्दा आए हैं। ग़ज़ल निखर जाएगी। सादर।"
Feb 23
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164
"221 2121 1221 212 नुक़सान हो गया वफ़ा के कारोबार में अब ख़ाक जी लगेगा मेरा रोज़गार में ख़ुशबू नहीं दे सकते हम ऐसे गुलाब हैं हमको ख़िज़ाँ ने लूटा है फ़स्ल-ए-बहार में ज़िंदा थे जब तलक हमें राहत नहीं मिली ख़ैर अब सुकूँ से लेट गए हैं मज़ार में इक बोसे में…"
Feb 23
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"आ. लक्ष्मण जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास। सुझाव भी ख़ूब! सादर।"
Oct 28, 2023
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"आ. अमीर जी, बेहद शुक्रिया, इस्लाह के लिए। सुकूँ चाहिए बस, यूँ हो या यूँ हो.... लय बाधित हो रही है। कृपया इसका बेहतर सुझाव बताने का कष्ट करें।"
Oct 28, 2023
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"आ. लक्ष्मण जी, हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद। सादर।"
Oct 28, 2023
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"आ. Nilesh जी, अच्छी ग़ज़ल हुई, बधाई स्वीकार करें। सादर।"
Oct 28, 2023

Profile Information

Gender
Male
City State
Almora Uttrakhand
Native Place
Almora
Profession
Working
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Passionate writer

(तरही ग़ज़ल - अब तुमसे दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम)
221 2121 1221 212

भागें कहाँ तलक ग़मे-आहो-फ़ुगाँ से हम
जाऐंगे तेरे इश्क़ में इक रोज़ जाँ से हम

बोला था सच, पलट नहीं पाए बयाँ से हम
अब तंग आ चुके हैं ख़ुद अपनी ज़बाँ से हम

लो देखते ही देखते सब सफ़्हे जल पड़े
क्या लिख गए सियाही-ए-सोज़े-निहाँ से हम!

इक फूल था कि मुरझा गया सर-ए-गुलसिताँ
इक उम्र थी कि गुज़रे थे दौरे-ख़िजाँ से हम

आओ सिखा दूं तुमको निगाहों की गुफ़्तगू
अब तुमसे दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम

आना नहीं था उसको नहीं आया 'ज़ैफ़' वो
सर पीटते ही रह गए उस आस्ताँ से हम

© मौलिक व अप्रकाशित

Zaif's Blog

ग़ज़ल - थामती नहीं हैं पलकें अश्कों का उबाल तक (ज़ैफ़)

 212 1212 1212 1212 

थामती नहीं हैं पलकें अश्कों का उबाल तक

भूल-सा गया है दिल भी, धड़कनों की ताल तक 

दो दिलों की दास्ताँ न कोई समझा है यहाँ 

अपना इश्क़ आ ही पहुँचा जुर्म के मलाल तक 

ऐ ख़ुदा, रखूँ मैं तुझसे रहमतों की आस क्या

मैं पहुँचता ही नहीं कभी तेरे ख़याल तक 

हाय! आ रहा है प्यार झूठे ग़ुस्से पर तेरे 

लाल शर्म से पड़े हैं यार, तेरे गाल तक 

आशना तुझे कहा है मैंने जाने किसलिए

पूछता…

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Posted on January 12, 2023 at 7:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल (ज़ैफ़)

2122 1212 22/112

इश्क़ में दिल-जले नहीं होते

काश के तुम मिरे नहीं होते

बस ज़रूरत बिगाड़ देती है

लोग वर्ना बुरे नहीं होते

यूँ चमत्कार रोज़ होते हैं

बस हमारे लिए नहीं होते

दोष मत दो नसीब को अपने

दुनिया में ग़म किसे नहीं होते

एक बिजली जला गई थी यूँ

ये शजर अब हरे नहीं होते

तोड़ना दिल मुझे भी आता है

काश तुम फूल-से नहीं होते

'ज़ैफ़' उनका तो हो गया लेकिन

वो…

Continue

Posted on January 6, 2023 at 7:27pm — 7 Comments

पुरानी ग़ज़ल (ज़ैफ़)

11212 11212 11212 11212 

हैं यूँ ज़िंदगी ने सितम किए, मुझे क्या से क्या है बना दिया

मैं तो आसमाँ के सफ़र में था, मुझे ख़ाक में ही मिला दिया

ये ख़ुशी भी दर्द समेत थी, कि ग़मों के सहरा की रेत थी

जो ख़ुशी ने लाके दिया मुझे, मिरे ग़म ने उसको भी खा दिया

मिरे दिल में दर्द ही दर्द था, कि तमाम उम्र ये सर्द था

लहू सारा दिल ने उड़ेल कर यूँ नज़र के रस्ते गिरा दिया

जो दिल-ओ-जिगर से भी प्यारा था, जिसे अपना कहके पुकारा…

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Posted on December 26, 2022 at 9:17pm — 6 Comments

ग़ज़ल - सज़ा तय हुई है ख़ता के बग़ैर (ज़ैफ़)

122 122 122 12

सज़ा तय हुई है ख़ता के बग़ैर

गला जाएगा अब रज़ा के बग़ैर

मेरे सब्र की इंतिहा देखिए

शिफ़ा चाहता हूँ दवा के बग़ैर

तेरे दाम-ए-तज़्वीर की ख़ैर हो

रिहा हो गया हूँ क़ज़ा के बग़ैर

तेरी बेवफ़ाई प कबतक जियूँ

कभी इश्क़ कर ले दग़ा के बग़ैर

अजब रस्म-ए-दुनिया है क़ाबिज़ यहाँ

न कुछ भी मिले इल्तिजा के बग़ैर

अना से छुटा तो ख़याल आया है

मैं कुछ भी नहीं हूँ ख़ुदा के…

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Posted on December 24, 2022 at 2:48pm — 5 Comments

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At 10:35pm on March 18, 2014,
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
said…

स्वागत है , भाई यमित आपका ओ बी ओ मे ॥

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । ग़ज़ल तक आने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः । "गिर के फिर सँभलने…"
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Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
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