सुपरिष्कृत आस्था
भर्रायी आवाज़
महीने हो गए जाड़े को गए
क्यूँ इतनी ठिठुरन है आज
आस्था में, सचेतन में मेरे
आंतरिक शोर के ताल के छोर से छोर तक
ठेलती रही है आस्था मुझको, मैं इसको
पर आज बुखार में ओढ़ने को इस पर
पास मेरे कोई कम्बल नहीं है
नुकीले अनुभवों से छिदराई
परिस्थितियों से पल-पल फटी शाल के सिवा
स्वजनों के बिछोह के आरोहावरोह
धूल भरे विश्वासों के संघर्ष
महानदी में आस्था पहले कभी ऐसी
घबराई तो न थी
हुआ है कुछ, या आज कुछ होने को है
नियति को भी शायद यह पता नहीं है
प्रचलित प्रथाओं के दावानल
पराभूत हुए मेरे सभी प्रत्यय
ठिठुरती आस्था, चिंतित चेतन
कह दूँ इनसे कि पास मेरे अब
कोई संबल नहीं है, संघर्ष हैं बहुत
स्वावलंबन नहीं है?
पर मैं इतना निराश क्यूँ हूँ?
पास अभी भी सिधांत तो हैं
सत्यनिष्ठा है, मन:शक्ति है
विवेक है, चरित्र है
क्यूँ न घेर लूँ मैं इनसे
परिकंपित चेतन को, ठिठुरती आस्था को
करूँ अनुभव आत्मा की अरुणाभ शोभा को
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//सुन्दर भावपूर्ण कविता ........//
मैं आपका आभारी हूँ, आदरणीया सविता जी। आशा है आप से प्रोत्साहन मिलता रहेगा। सादर।
//निराशा की गर्त से उबरने की राह को प्रकाशित करती हुई आपकी इस अनुपम रचना को नमन.
ऐसी रचनाएं हम पाठकों को नव-ऊर्जा देती हैं//
यह रचना आपको अच्छी लगी, यह अत्यँत सुखद एहसास है। इसके भाव मेरे लिए भी बहुत मान्य रखते हैं।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया विन्दु जी।
//उस सोच को शब्दों में बांधना ....बहुत लाजवाब है ...आपको पढ़ना अपने अंतर्मन को पढ़ने जैसा है ... इस रचना ने भी मुझे ....मुझसे मिला दिया ....आपकी लेखनी कमाल है ... बहुत बहुत नमन ... //
आपकी कवित्तमय प्रीतिकर प्रतिक्रिया एवं सराहना के लिए हृदयतल से आभारी हूँ, आदरणीया प्रियंका जी।
//आपकी प्रस्तुत रचना जिस व्यवस्थित ढंग से मानवसुलभ विभ्रम को शब्दबद्ध करती है वह आपकी रचनाधर्मिता के प्रति सादर भाव जगाती है//
ऐसी प्रतिक्रिया मेरे लिए आशीर्वाद है। आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ जी।
//जब तलक है साँस तब तलक है आस। सुन्दर भावपूर्ण कविता//
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया मंजरी जी।
//बहुत सुन्दर भाव .......आदरणीय लाजवाब कविता के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥//
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गिरिराज जी।
//एक कटु सत्य जो सभी के जीवन में कहीं न कहीं, कभी न कभी मुखरित होता है, भावनाओं का स्वरूप् दे शब्दों में पिरोने के लिए हार्दिक बधाई//
रचना को इस प्रकार सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।
//कविता का एक एक शब्द झकझोरता हुआ अंतरात्मा को छू जाता है, अनंत आशाएँ जगाती हुई सुंदर भावपूर्ण रचना //
आपने इस सुन्दर भावना से इस रचना को मान दिया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी।
आशा है ऐसे ही प्रेरणा देती रहेंगी।
//किस किस पंक्ति पर बिछूं I .....
और फिर देदीप्यमान अन्तश्चेतना--------- आह सुन्दरते ---- अमरते------अभिनवे //
आदरणीय गोपाल नारायन जी, आपसे इस प्रकार मान मिलना मेरे प्रोत्साहन के लिए बहुत मान्य रखता है।
आपका हार्दिक आभार।
सुन्दर भावपूर्ण कविता ........आदरणीय चाचाजी सादर नमस्ते
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