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आत्मपीडा में अनुभूति सुख की लिए

दग्ध होता रहा अनुभवो  में सदा

सत्य ही उस करुण के ह्रदय कोश में

पल रहा कोई जीवंत अनुराग है i

 

मृत्यु आती नहीं चैन मिलता नहीं

युद्ध होता है विष चेतना में प्रबल

दंश लेता है जब फिर न देता लहर

क्रुद्ध फुंकारता नेह का नाग है i

 

मौन बेसुध पड़ा प्राण के अंक में

याद की वेदना में सजल जो हुआ

स्वेद-श्लथ गात में कुछ चुभन सी लिए

स्नेह सोया हुआ था गया जाग है  i

 

सिसकियो की व्यथा आंसुओ ने सुनी

वाग्देवी ने उसको मुखर कर दिया

मन चकित दर्प कवि-बोध का भ्रम लिए

सोचता इसमें क्या उसका प्रतिभाग है

 

शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं

वेदना के बिना व्यर्थ  अनुराग है

गीत  तो आंसुओ में ढले है सदा

यदि ह्रदय  में प्रबल आग ही आग है i

 

(अप्रकाशित व मौलिक)

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 22, 2014 at 11:25am

आदरणीय सौरभ जी

आप से प्रोत्साहन मिलने का आनंद ही जुदा है i  कृपया ऐसे हे स्नेह बनाये रखें  i सादर i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2014 at 12:33am

कर्मठता और संलग्नता को शब्दबद्ध कर आपने रचनाधर्मिता को मान दिया है, आदरणीय गोपालजी..

इस सुन्दर और पठनीय रचना के लिए हार्दिक बधाई !

सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 21, 2014 at 12:41pm

आदरणीय लडीवाला जी

आपकी सस्तुति  का एहतराम करता हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 21, 2014 at 12:39pm

मित्र भंडारी जी

आपके स्नेह का आभारी हूँ  i

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 21, 2014 at 10:30am

जीवन में वेदना को शब्द देते है जो, कवि बन जाते है वो, इसीलिए कहा गया है -वियोगी होगा पहला कवि, मुहं से निकली होगी आह !

इसी तरह के निकले मामिक भाव लिए शब्दों से बुनी रचना के लिए हार्दिक बधाई डॉ गोपाल नारायण जी -

शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं

वेदना के बिना व्यर्थ  अनुराग है

गीत  तो आंसुओ में ढले है सदा

यदि ह्रदय  में प्रबल आग ही आग है i-  ह्रदय की आग में झुलसे को कौन बचा पाया है, अनुपम भाव रचना हुई है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 20, 2014 at 9:51pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , जीवन की तमाम पीड़ाओं को बहुत सुन्दर सार्थक शब्द मिले हैं ॥ बहुत मार्मिक ! सुन्दर गीत रचना के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥

शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं

वेदना के बिना व्यर्थ  अनुराग है

गीत  तो आंसुओ में ढले है सदा

यदि ह्रदय  में प्रबल आग ही आग है i  बहुत सुन्दर !!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 20, 2014 at 9:02pm

मीना जी

आपका शत -शत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 20, 2014 at 9:01pm

आदरणीय पंकज जी

आपके स्नेह को प्रणाम  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 20, 2014 at 8:59pm

आदरणीय  करुण जी 

आपके स्नेह का आभार i

Comment by Meena Pathak on July 20, 2014 at 6:07pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..बधाई आप को | सादर 

कृपया ध्यान दे...

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