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बहुत सोचा तुम्हें आखिर भुला दूँ मैं-ग़ज़ल

1222/ 1222/ 1222

बहुत सोचा तुम्हें आखिर भुला दूँ मैं

जले लौ तो उसे खुद ही हवा दूँ मैं

 

उदासी का सबब गर पूछ लें मुझसे

अज़ीयत के निशाँ उनको दिखा दूँ मैं

 

कभी सागर कभी सहरा कभी जंगल

यूँ क्या-क्या बेख़याली में बना दूँ मैं

 

हक़ीकत तो बदल सकती नहीं फिर क्यों

गुजश्ता उन पलों को अब सदा दूँ मैं     

 

तुम्हारी कुर्बतों के छाँटकर लम्हे

किताबों का हर इक पन्ना सजा दूँ मैं

 

इन आँखों से टपकती बून्दों को इक-इक

समंदर में गिरा कर फिर बहा दूँ मैं

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on August 23, 2014 at 7:17pm

आदरणीया राजेश दीदी आपका हार्दिक आभार


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Comment by rajesh kumari on July 30, 2014 at 10:08am

हक़ीकत तो बदल सकती नहीं फिर क्यों

गुजश्ता उन पलों को अब सदा दूँ मैं     ----शानदार शेर 

 

तुम्हारी कुर्बतों के छाँटकर लम्हे

किताबों का हरिक पन्ना सजा दूँ मैं-----बहुत खूब,..... उम्दा ....हर इक लिख  दें तो और सुन्दर लगेगा 

बहुत बढ़िया ग़ज़ल ..शिज्जू भैया बधाई आपको 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 30, 2014 at 9:59am

आदरणीय सौरभ सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 30, 2014 at 9:59am

आदरणीय डॉ आशुतोष सर रचना की सराहना के लिये बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 30, 2014 at 9:58am

आदरणीय गिरिराज सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 28, 2014 at 10:51pm

इस ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई शिज्जू भाईजी.. .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 4:19pm

वाह शिज्जू जी ..पढ़कर आनंद आ गया ..उर्दू के शब्दों का अर्थ इस ग़ज़ल में मुझे नहीं मिला .मशक्कत करने पडी ..हर शेर उम्दा है इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2014 at 12:07pm

आदरणीय शिज्जु भाई ,पूरी ग़ज़ल बढ़िया , रवाँ है , सभी अश आर खूबसूरत हैं , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ उनमे से ये शेर  बहुत ही पसंद आया -

हक़ीकत तो बदल सकती नहीं फिर क्यों

गुजश्ता उन पलों को अब सदा दूँ मैं      -------- क्या बात है भाई !! ढेरों बधाई ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 28, 2014 at 8:21am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपकी सराहना एवं अनुमोदन से रचनाकर्म सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 28, 2014 at 8:20am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपने रचना को समय दिया सराहना की आपका तहेदिल से शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

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