For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहुत सोचा तुम्हें आखिर भुला दूँ मैं-ग़ज़ल

1222/ 1222/ 1222

बहुत सोचा तुम्हें आखिर भुला दूँ मैं

जले लौ तो उसे खुद ही हवा दूँ मैं

 

उदासी का सबब गर पूछ लें मुझसे

अज़ीयत के निशाँ उनको दिखा दूँ मैं

 

कभी सागर कभी सहरा कभी जंगल

यूँ क्या-क्या बेख़याली में बना दूँ मैं

 

हक़ीकत तो बदल सकती नहीं फिर क्यों

गुजश्ता उन पलों को अब सदा दूँ मैं     

 

तुम्हारी कुर्बतों के छाँटकर लम्हे

किताबों का हर इक पन्ना सजा दूँ मैं

 

इन आँखों से टपकती बून्दों को इक-इक

समंदर में गिरा कर फिर बहा दूँ मैं

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 629

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 23, 2014 at 7:17pm

आदरणीया राजेश दीदी आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 30, 2014 at 10:08am

हक़ीकत तो बदल सकती नहीं फिर क्यों

गुजश्ता उन पलों को अब सदा दूँ मैं     ----शानदार शेर 

 

तुम्हारी कुर्बतों के छाँटकर लम्हे

किताबों का हरिक पन्ना सजा दूँ मैं-----बहुत खूब,..... उम्दा ....हर इक लिख  दें तो और सुन्दर लगेगा 

बहुत बढ़िया ग़ज़ल ..शिज्जू भैया बधाई आपको 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 30, 2014 at 9:59am

आदरणीय सौरभ सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 30, 2014 at 9:59am

आदरणीय डॉ आशुतोष सर रचना की सराहना के लिये बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 30, 2014 at 9:58am

आदरणीय गिरिराज सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 28, 2014 at 10:51pm

इस ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई शिज्जू भाईजी.. .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 4:19pm

वाह शिज्जू जी ..पढ़कर आनंद आ गया ..उर्दू के शब्दों का अर्थ इस ग़ज़ल में मुझे नहीं मिला .मशक्कत करने पडी ..हर शेर उम्दा है इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2014 at 12:07pm

आदरणीय शिज्जु भाई ,पूरी ग़ज़ल बढ़िया , रवाँ है , सभी अश आर खूबसूरत हैं , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ उनमे से ये शेर  बहुत ही पसंद आया -

हक़ीकत तो बदल सकती नहीं फिर क्यों

गुजश्ता उन पलों को अब सदा दूँ मैं      -------- क्या बात है भाई !! ढेरों बधाई ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 28, 2014 at 8:21am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपकी सराहना एवं अनुमोदन से रचनाकर्म सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 28, 2014 at 8:20am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपने रचना को समय दिया सराहना की आपका तहेदिल से शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
18 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
19 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
23 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service