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नवगीत : जैसे कोई नन्हा बच्चा छूता है पानी

मेरी नज़रें तुमको छूतीं

जैसे कोई नन्हा बच्चा

छूता है पानी

 

रंग रूप से मुग्ध हुआ मन

सोच रहा है कितना अद्भुत

रेशम जैसा तन है

जो तुमको छूकर उड़ती हैं

कितना मादक उन प्रकाश की

बूँदों का यौवन है

 

रूप नदी में छप छप करते

चंचल मन को सूझ रही है

केवल शैतानी

 

पोथी पढ़कर सुख की दुख की

धीरे धीरे मन का बच्चा

ज्ञानी हो जाएगा

तन का आधे से भी ज्यादा

हिस्सा होता केवल पानी

तभी जान पाएगा

 

जीवन मरु में तुम्हें हमेशा

साथ रखेगा जब समझेगा

अपनी नादानी

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 9, 2014 at 7:39pm

हृदय से आभारी हूँ आदरणीय सौरभ जी, स्नेह बना रहे।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 9, 2014 at 7:38pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ गिरिराज भंडारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 9, 2014 at 7:37pm

बहुत बहुत शुक्रिया laxman dhami जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 9, 2014 at 7:35pm

धन्यवाद ram shiromani pathak जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 9, 2014 at 7:35pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ rajesh kumari जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 9, 2014 at 7:34pm

शुक्रिया savitamishra जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 9, 2014 at 7:33pm

बहुत बहुत शुक्रिया MAHIMA SHREE जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 9, 2014 at 7:31pm

बहुत  बहुत धन्यवाद  shashi purwar जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 5:44pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , सुन्दर , नवगीत के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2014 at 10:50am

इस बेहतरीन नवगीत के लिए बहुत बहुत बधाई .

कृपया ध्यान दे...

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