कभी झेली भी है शर्मिन्दगी क्या
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कभी खुद से शिकायत भी हुई क्या
कभी झेली भी है शर्मिन्दगी क्या
बहुत बाहोश खोजे , मिल न पाये
मिला देगी हमें अब बेखुदी क्या
ये क़िस्सा, दर्द- आँसू से बना है
समझ लेगी इसे आवारगी क्या
अगर सीने में सादा दिल है ज़िन्दा
बनावट बाहरी क्या, सादगी क्या
ख़ुदा वालों ख़ुदा कहने से पहले
ज़रा सा जान तो लो, है खुदी क्या
हमें तो पेट ने कर डाला बेसुघ
हमारी क़ाफिरी क्या, बंदगी क्या
अमीरी , ज़िंदगी जीती हो शायद
हमारी मौत क्या है ज़िंदगी क्या
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
मोहतरम गिरिराज भंडारी साहब उम्दा कलाम के लिये बेहद मुबारकबाद!!
आदरनीय आशुतोष भाई , आपकी सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय जितेन्द्र भाई , आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय भाईसाब ..बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है हर शेर काबिले तारीफ ..इन दो शेरो पर मेरी तरफ से बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें अगर सीने में सादा दिल है ज़िन्दा
बनावट बाहरी क्या, सादगी क्या
अमीरी , ज़िंदगी जीती हो शायद
हमारी मौत क्या है ज़िंदगी क्या...हार्दिक बधाई के साथ सादर
बहुत बेहतरीन गजल, आदरणीय गिरिराज जी. आपको दिली बधाई
बहुत बहुत शुक्रिया , आदरणीया राजेश जी , आपकी इस मुक्त प्रशंशा ने मेरी हिम्मत बढ़ा दी है ॥ स्नेह बनाये रखियेगा ॥
ख़ुदा वालों ख़ुदा कहने से पहले
ज़रा सा जान तो लो, है खुदी क्या-----लाजबाब
हमें तो पेट ने कर डाला बेसुघ
हमारी क़ाफिरी क्या, बंदगी क्या----उम्दा शेर
अमीरी , ज़िंदगी जीती हो शायद
हमारी मौत क्या है ज़िंदगी क्या----दिल छू गया ये शेर तो
बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज जी बधाई आपको
आदरणीय आमोद भाई , हौसला अफज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया ॥
आ. बड़े भाई गोपाल जी , आपका आशीर्वाद मिला तो ग़ज़ल कहना सार्थक हो गया ॥ स्नेहिल सराहना के लिये आपका आभार ।
आदरणीय सौरभ भाई , गज़ल पर आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
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