For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी - - कभी झेली भी है शर्मिन्दगी क्या

कभी  झेली  भी है शर्मिन्दगी क्या

***************************

 1222      1222       122

कभी खुद से शिकायत भी हुई क्या

कभी  झेली  भी है शर्मिन्दगी क्या

 

बहुत  बाहोश खोजे , मिल न पाये

मिला  देगी  हमें अब  बेखुदी क्या

 

ये क़िस्सा,  दर्द- आँसू  से बना है

समझ  लेगी  इसे आवारगी  क्या

 

अगर सीने में सादा दिल है ज़िन्दा

बनावट  बाहरी क्या, सादगी  क्या

 

ख़ुदा वालों  ख़ुदा  कहने से  पहले

ज़रा सा जान तो लो, है खुदी क्या

 

हमें तो  पेट ने  कर डाला  बेसुघ

हमारी  क़ाफिरी  क्या, बंदगी क्या

 

अमीरी , ज़िंदगी  जीती  हो शायद

हमारी  मौत क्या है ज़िंदगी  क्या

 *******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

 

 

 

Views: 718

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Asif Amaan on August 8, 2014 at 10:54am

मोहतरम गिरिराज भंडारी साहब उम्दा कलाम के लिये बेहद मुबारकबाद!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2014 at 8:11am

आदरनीय आशुतोष भाई , आपकी सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2014 at 8:10am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , आपका आभारी हूँ ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2014 at 6:53pm

आदरणीय भाईसाब ..बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है हर शेर काबिले तारीफ ..इन दो शेरो पर मेरी तरफ से बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें अगर सीने में सादा दिल है ज़िन्दा
बनावट बाहरी क्या, सादगी क्या
अमीरी , ज़िंदगी जीती हो शायद
हमारी मौत क्या है ज़िंदगी क्या...हार्दिक बधाई के साथ सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 7, 2014 at 12:58am

बहुत बेहतरीन गजल, आदरणीय गिरिराज जी. आपको दिली बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2014 at 9:22pm

बहुत बहुत शुक्रिया , आदरणीया राजेश जी , आपकी इस मुक्त प्रशंशा ने मेरी हिम्मत बढ़ा दी है ॥ स्नेह बनाये रखियेगा ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 6, 2014 at 8:18pm

ख़ुदा वालों  ख़ुदा  कहने से  पहले

ज़रा सा जान तो लो, है खुदी क्या-----लाजबाब 

 

हमें तो  पेट ने  कर डाला  बेसुघ

हमारी  क़ाफिरी  क्या, बंदगी क्या----उम्दा शेर 

 

अमीरी , ज़िंदगी  जीती  हो शायद

हमारी  मौत क्या है ज़िंदगी  क्या----दिल छू गया ये शेर तो 

बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज जी बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2014 at 8:29am

आदरणीय आमोद भाई , हौसला अफज़ाई के लिये  तहे दिल से  शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2014 at 8:27am

आ. बड़े भाई गोपाल जी , आपका आशीर्वाद मिला तो ग़ज़ल कहना सार्थक हो गया ॥ स्नेहिल सराहना के लिये आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2014 at 8:26am

आदरणीय सौरभ भाई , गज़ल पर आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service