For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“भाभी, अगर कल तक मेरी राखी की पोस्ट आप तक नहीं पँहुची तो परसों मैं आपके यहाँ आ रही हूँ  भैया से कह देना ” कह कर रीना ने फोन रख दिया|

अगले दिन भाभी ने सुबह ११ बजे ही फोन करके कहा, "रीना राखी पहुँच गई है ”

"पर भाभी मैंने तो इस बार राखी पोस्ट ही नहीं की थी !!! "


(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 1614

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 12, 2014 at 1:13pm

जी दीदी .मैं आपकी दुहरी मानसिकता वाली बातों से पूर्णत: सहमत हूँ, कभी-कभी यही असंतुलन या संवादहीनता किसी तीसरे की भावनाओं को नही समझ पाता. और शायद वही ननद भी भाभी बनकर तैयार हो जाती है अगले रक्षाबंधन के लिए.

आपके स्नेहिल प्रतिउत्तर हेतु आपका आभार दीदी :-))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2014 at 12:54pm

हाँ जितेन्द्र भैया सही कहा आपने किन्तु बहुत फर्क है जो स्त्री रक्षाबंधन पर अपने भाई को देख फूली नहीं समाती वही स्त्री नन्द को इस पावन पर्व पर भी देखना भी नहीं चाहती ये कैसी दुहरी मानसिकता व्पाप्त हो गई आज सोचनीय है 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 12, 2014 at 12:48pm

आदरणीया राजेश दीदी. मेरा यह मानना है कि पैसा अपनी जगह है ख़ास तो एक-दो दिन के लिए आई बहन से जो भैया-भाभी के स्वतंत्र जीवन में एक दखल सा होता है. वो ही ख़ास कारण है इन मनमुटावों का

आपको लघुकथा पर पुन: बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2014 at 12:03pm

आ० लक्ष्मण भैया ये तो आज की और हर दूसरे तीसरे घर कहानी है  रिश्तों पर पैसा भारी हो रहा है ..आपको ये लघु कथा प्रभावित की हृदय से आभारी हूँ ,शुभकामनायें |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2014 at 11:22am

आ० राजेश बहन यह तो मेरे घर की कथा कह डाली आपने . इस पर आपको जीतनी भी बधाई कहू वह काम ही है .जब हम रिश्तों को धन से तौलने लगते हैं तो यही हस्र होता है .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2014 at 10:07am

Saurabh mishra ji ,thanks a lot for your kind words in appreciation of this short story.

Comment by Saurabh Mishra on August 12, 2014 at 12:18am

using Limited words you have explained unlimited feelings


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 11, 2014 at 9:37pm

आ० एस सी ब्रह्मचारी जी,आपने लघु कथा के अनुमोदन में जो पंक्ति उद्दृत की है उनमे बहुत सच्चाई है जो रिश्तों की अहमियत आज नहीं समझ रहा कल उसके जरूरत के वक़्त उसके पास कोई न होगा .पर आज  की  पीढ़ी को ये बात समझ नहीं आती |आपका बहुत बहुत शुक्रिया.सादर  

Comment by S. C. Brahmachari on August 11, 2014 at 9:07pm

आपकी लघु कथा पढ़ते समय कही पढ़ी निम्न पंक्तियाँ याद आ रही थी --- रिश्तों को निभाने के लिए समय निकालिए , वर्ना जब आपके पास समय होगा तब शायद रिश्ते ही न बचे हों । आज के युग मे रिश्ते कैसे बादल रहे हैं ! सोच सोच मन व्यथित हो जाता है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 11, 2014 at 8:07pm

आ० विजय निकोर जी ,आपको ये लघु कथा पसंद आई सार्थक लगी मेरा लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार आपका सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service