१-
जहाँ अश्रु की बूँदें
रोने वालों के दुखों को,
दुखों की सान्ध्रता को
कम कर देती है
वहीं पर यही अश्रु बूँदें
रोने वालों से भावनाओं से जुड़े
उनके अपनों को
बेदम भी कर देती है
२-
संयत नहीं हो पाए अगर आप
अपने भाव के साथ
तो वही भाव,
कहे गये शब्दों के अर्थ बदल देता है
और वहीं
अगर आप सही नहीं समझ पाए शब्दों को
तो शब्द,
आपके चहरे से प्रकट
भावों के अर्थ बदल देता है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , रचना के अनुमोदन के लिए आपका आभार |
मित्र
दूसरी क्षणिका तो बस कमाल है i
लाजवाब !
आदरणीय सौरभ भाई , रचना के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार | भाव को भावों कर लूंगा | व्याकरणीय त्रुटि दूर करवाने के लिए आपका शुक्रिया |
दोनों क्षणिकायें सार्थक हुई हैं, आदरणीय !
दूसरे में शब्दों के समानान्तर शब्द आया है, लेकिन वह बहुवचन का ही है. अतः अंतिम पंक्ति भावों के अर्थ बदल देते हैं होना चाहिये.
इस वैचारिक प्रस्तुतिके लिए हार्दिक बधाई.
आदरणीय बड़े भाई विजय जी , रचना के अनुमोदन के लिए आपका आभार |
आदरणीय विजय मिश्र भाई , रचना को आपका अनुमोदन मिला तो रचना का माँ बढ़ गया | आपकी सराहना के लिए बहुत आभार |
सत्य कथन । बधाई, आदरणीय गिरिराज जी।
आदरनीया सविता जी , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण लाड़िवाल भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका दिली आभार ।
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