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दीप आंधी में जलाना इतना आसाँ है नहीं

२१२२      २१२२     २१२२     २१२  

राह पर्वत पर बनाना इतना आसाँ है नहीं 

दीप आंधी में जलाना  इतना आसाँ है नहीं 

सरहदों पे जान देते आज माँ के लाडले 

गीत आजादी के गाना इतना आसाँ है नहीं 

दोस्ती का हाथ लेकर फिर खड़े अहबाब हैं 

जो दफ़न उसको जगाना इतना आसाँ है नहीं 

बस्तियां चाहें जला लें आप कितनी भी यहाँ 

है हकीकत घर बनाना इतना आसाँ है नहीं 

हाथ हाथों से मिलाये हर किसी ने बज्म में 

दिल से दिल को पर मिलाना इतना आसाँ है नहीं 

सरहदों पे दाग खूनी अब तलक सूखे नहीं 

प्रीत दुश्मन से जताना इतना आसाँ है नहीं 

गाँव यूं तो छोड़ आया था मैं बचपन में मगर 

छांव पीपल की भुलाना इतना आसाँ है नहीं 

.

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by savitamishra on August 22, 2014 at 9:30pm

हाथ हाथों से मिलाये हर किसी ने बज्म में 

दिल से दिल को पर मिलाना इतना आसाँ है नहीं....बहुत खुबसुरत

Comment by Shyam Narain Verma on August 22, 2014 at 5:31pm
इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई 
Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 22, 2014 at 4:40pm

पवन जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्धिक धन्यवाद 

Comment by Pawan Kumar on August 22, 2014 at 4:24pm

बहुत ही सुन्दर पंक्तियां हैं। इन पंक्तियों में बहुत ही गहराई है ....बहुत ही अच्छा लगा .... सादर बधाई

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