For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चूस हाथों के अंगूठे नन्हा बचपन सो गया

२१२२    २१२२     २१२२      २१२ 

 

वो कहें सागर  में मिलकर आज दरिया खो गया 

हम कहें सागर से दरिया मिल के सागर हो गया 

 

सोच कुछ तेरी जुदा है सोच कुछ मेरी अलग

सोचिये सोचों का अंतर आज  कैसा हो गया

 

करते दंगों पे सियासत रहनुमा इस देश के 

देख कर अपनों की लाशें नन्हा बचपन रो गया 

 

दर्द पहले ही हज़ारों जिन्दगी में दोस्तों 

फिर नया ये दर्द क्यूँ जग जिन्दगी में बो गया 

 

माँ रही मशगूल जश्नों में यूं सारी रात ही 

चूस हाथों के अंगूठे नन्हा बचपन सो गया 

 

दर्द जब जब भी बढा है दिल हुआ बेचैन है 

ढाल शेरो में ग़मों को दिल ये ग़ज़लें पो गया 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 694

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 4, 2014 at 2:22pm

आदरणीय हरिवल्लभ जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए दिल से धन्यवाद saadar

Comment by harivallabh sharma on September 2, 2014 at 5:23pm

बहुत सुन्दर भावपूर्ण गज़ल ..

"माँ रही मशगूल जश्नों में यूं सारी रात ही 

चूस हाथों के अंगूठे नन्हा बचपन सो गया"....बहुत प्रभावी...वाह.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 2, 2014 at 9:24am

आदरणीय राकेएश जी , भुवन जी , आदरणीया महिमा जी आप के इन स्नेहिल शब्दों के लिए दिल से धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 2, 2014 at 9:23am

आदरनीय गोपाल सर ..आपका स्नहे और मार्गदर्शन हम जैसे सीखने वालों के लिए प्रेरणा मंत्र का काम करता है ये स्नेह यूं ही मिलता रहे कामना के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 2, 2014 at 9:22am

आदरणीय जीतेन्द्र जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 2, 2014 at 9:21am

आदरणीय संतलाल सर ..बस ऐसे ही आप सभी विद्वतजनो का मार्गदर्शन मिलता रहे ऐसी कामना के साथ सादर 

Comment by Santlal Karun on September 1, 2014 at 5:06pm

आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्र जी,

अच्छी ग़ज़ल और ख़ास तौर से इस शेर की नवीनता आकृष्ट करती है--

"माँ रही मशगूल जश्नों में यूं सारी रात ही 

चूस हाथों के अंगूठे नन्हा बचपन सो गया"

.. हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2014 at 12:00pm

बेहतरीन गजल प्रस्तुति आदरणीय डा.आशुतोष जी. बहुत-२ बधाई आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 29, 2014 at 12:11pm

आशुतोष जी

बहुत अच्छी गजल कही आपने i

माँ रही मशगूल जश्नों में यूं सारी रात ही 

चूस हाथों के अंगूठे नन्हा बचपन सो गया 

Comment by Dr. Rakesh Joshi on August 28, 2014 at 11:10pm

आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी,
इस शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
2 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service