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नाम चाहे हो जुदा सब का है मालिक इक ही

समस्त गुरुओं को सादर प्रणाम के साथ 

2122     2122  2122     22/112 

रास्ता रब का हमें जिसने दिखाया यारों 

कह गुरु उसको है  सर हमने झुकाया यारों 

ज्ञान दीपक से किया जिसने जहाँ को रोशन 

फन भी जीने का हमें उसने सिखाया यारों 

भेद मजहब में कभी उसने किया ही है नहीं 

पाठ उल्फत का ही कौमों को पढ़ाया यारों 

नाम चाहे हो जुदा सब का है मालिक इक ही 

गूढ़ बातों को सहज उसने बताया यारों 

हाथ अन्दर से लगाकर चोट  बाहर से करे 

कच्ची मिट्टी को घड़ा ऐसे  बनाया यारों 

डगमगाए थे कदम जब भी मेरे तूफां में 

हौसला देके गुरु ने ही चलाया यारों 

जिन्दगी हम को लगी जब भी ग़मों में डूबी 

दीप उम्मीदों को अंतस में जलाया यारों 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 3:21pm

आदरणीय गोपाल सर ...आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आप सब का स्नेह और मार्गदशन मुझे सतत मिलता रहे ऐसी कामना करते हुए ...सादर धन्यवाद ..सादर प्रणाम 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 3:19pm

आदरणीय लक्षमण जी ...रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 3:18pm

आदरणीया महिमा जी ..आप सब की प्रेरणा से ही सतत लिखने की प्रेरणा मिलती है ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 3:17pm

पवन जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 11:13am

आदरणीय भाई, आशुतोष जी बेहतरीन गजल हुई है हार्दिक बधाई प्रेषित है ।

Comment by MAHIMA SHREE on September 5, 2014 at 4:21pm

जिन्दगी हम को लगी जब भी ग़मों में डूबी 

दीप उम्मीदों को अंतस में जलाया यारों ... बहुत खूब हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2014 at 10:45am

बहुत सुन्दर , समयानुकूल गजल कही है , आदरणीय आशुतोष भाई , दिली मुबारकबाद |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 5, 2014 at 9:34am

शिक्षक दिवस को ऐसी ही गजल की तलाश थी  i

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 4, 2014 at 3:52pm

bahut khoob ..waah 

Comment by Pawan Kumar on September 4, 2014 at 3:30pm

राम कृष्ण से को बड़ा, उनहु तो गुरु कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन।
हरि सेवा युग चार है, गुरु सेवा पल एक।
ताके पटतर ना तुलै, सन्तन किया विवेक।

बहुत सुन्दर रचना.. बधाई सादर

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