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खाली घर बेसामान रहा हूँ।।

खाली घर बेसामान रहा हूँ।
अपने ही घर दरबान रहा हूँ।।

बदनामी का आलम है ऐसा।
यूँ खुद पे ही अहसान रहा हूँ।।

कभी कभी हँस लेता हूँ यारों।
आखिर मै भी इंसान रहा हूँ।।

अक्सर दिल से खेला करती है।
मै तो केवल सामान रहा हूँ।।

लगता है तुम तो भूल गये हो।
लेकिन मै तो पहचान रहा हूँ।।

वो जो अब मुझको छोड़ गये है।
उनका ही मै अरमान रहा हूँ।।

वो जाने किस शै में दिख जाये।।
अब सारी दुनियाँ छान रहा हूँ।।
**************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 530

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Comment by ram shiromani pathak on September 11, 2014 at 12:22am
हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोर जी ।।सादर
Comment by vijay nikore on September 10, 2014 at 11:35pm

अच्छी गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय राम जी।

Comment by ram shiromani pathak on September 10, 2014 at 9:57am
हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी।। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2014 at 8:55pm

सुन्दर ग़ज़ल , बधाइयाँ , आदरणीय राम भाई |

Comment by ram shiromani pathak on September 8, 2014 at 10:17pm
गुमनाम भाई बहुत बहूत आभार आपका
Comment by ram shiromani pathak on September 8, 2014 at 10:16pm
हार्दिक आभार आदरणीय गोपाल नारायण जी।। सादर
Comment by gumnaam pithoragarhi on September 8, 2014 at 5:01pm

बहुत बढ़िया ! सुन्दर ग़ज़ल पर शुभकामनाएं ,,,,,,,,,,,

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 8, 2014 at 1:16pm

वो जाने किस शै में दिख जाये।।
अब सारी दुनियाँ छान रहा हूँ।।
        बहुत बढ़िया ! सुन्दर !

Comment by ram shiromani pathak on September 8, 2014 at 10:33am
हार्दिक आभार आदरणीय अशुतोष मिश्र जी।।। सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 8, 2014 at 10:12am

आदरणीय  इस सुंदर ग़ज़ल पर मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं सादर 

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