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आसमानी फ़ासले .... (विजय निकोर)

आसमानी फ़ासले

बच्चों-सा स्वप्निल स्वाभाविक संवाद

हमारी बातों में मिठास की आभाएँ

ताज़े फूलों की खुशबू-सी निखरती

सुखद अनुभवों की छवियाँ ...

हो चुकीं इतिहास

समय-असमय अब अप्रभाषित

शून्य-सा मुझको लघु-अल्प बनाती

अस्तित्व को अनस्तित्व करती

निज अहं को आदतन संवारती

आलोचनाशील असंवेदनशीलता तुम्हारी

अब बातें हमारी टूटी कटी-कटी ...

बीते दिनों की स्मर्तियाँ पसार

मानवीय उलझनों के पठार

कर देते बेहद उदास

टूटे विश्वासों के विक्षोभों की अनथक गहरी पीर

इस पर भी सौन्दर्य-संध्या में मंदिर में

तुम्हारे लिए नित्य अनवरत अनंत प्रार्थना

सुख की याचना

अकेली-सुनसान रातों जलती है ढिबरी

राख रिश्ते की वीरानी

हथेली पर अशेष

जलते गर्म फफोले

तुम्हारी पहचान से अनदेखी

चट्टानी चोट

ज़िन्दगी की दलदल

फूटते कसकते बुलबुले

ठोकर से अकुलाते

पैर-अंगूठे के उखड़े नख का दर्द ...

--------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Vindu Babu on October 30, 2014 at 8:51pm

आत्मीय रिश्तों में अनापेक्षित बदलाव का आभास हृदय के तार-तार को झकझोर कर रख देता है..और इसी पल-पल चुभते कचोटते अहसास और अतीत की सुखद यादों के बीच बांध सी होती हैं ऐसी गहन अभिव्यक्तियाँ,जैसी आपने प्रस्तुत की।

आपके आत्मीय भाव और गम्भीर अभिव्यक्ति पाठक को साथ बहा ले जाने में सुसक्षम होती हैं आदरणीय।

रचना से बार-बार गुजरना अद्भुत अनुभूति देता है।

आपको हार्दिक बधाई आदरणीय इस सफ़ल रचना के लिए। सादर

Comment by vijay nikore on October 16, 2014 at 3:02pm

//बहुत ही मार्मिक//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।

Comment by vijay nikore on October 16, 2014 at 3:00pm

//आपका लेखन हर बार नया और अद्भुत होता है ....बहुत बहुत गहरी रचना और उसके अनकहे भाव//

रचना को सराहने के लिए और इस प्रकार मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया प्रियंका जी। 

Comment by vijay nikore on October 16, 2014 at 2:58pm

रचना की बधाई के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय जवाहर लाल जी।

Comment by vijay nikore on October 15, 2014 at 11:49am

// फिर से एक पठनीय रचना आपकी और से आई , कुछ देर ठिठकने को मजबूर करती सी ..बहुत- बहुत बधाई //

इन सुंदर काव्यमय शब्दों से सराहना करने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश जी।

Comment by vijay nikore on October 15, 2014 at 11:46am

रचना को समय देने के लिए और निहित भावों के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by vijay nikore on October 13, 2014 at 6:40am

भाई गिरीराज जी, रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on October 8, 2014 at 5:11pm

 // समय के साथ इंसानी व्यवहार के बदलते अंदाज़ को जिस  कलात्मक अंदाज़ से आपने चित्रित किया है उसमें एक ही साथ आँखों से आँसू और होठों के कोर से तिर्यक मुस्कान को टपकते हुए देख रहा हूँ //

मैं आपकी सहृदय भावाभिव्यक्ति से अभिभूत हूँ l सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय शरदिंदु जी।

Comment by vijay nikore on October 8, 2014 at 5:05pm

//आपकी रचनाये हमेसा चमत्कृत करती है और एक बात 5-6 बार पढना तो बनता है//

मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय राम जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 8, 2014 at 9:49am
सुखद अनुभवों की छवियाँ ...
हो चुकीं इतिहास
बहुत ही मार्मिक ,आदरणीय विजय निकोर जी , सादर बधाई .

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