अमृता प्रीतम जी ... दर्द की दर्द से पहचान
स्मृतियों की धूल का बढ़ता बवन्डर ... पर उस बवन्डर में कुछ भी वीरान नहीं। कण-कण परस्पर जुड़ा-जुड़ा, कण-कण पहचाना-सा। प्रत्येक स्मृति से जुड़ी सुखद अनुभूति, बीते पलों को जीवित रखती उनको बहुत पास ले आती है, अमृता जी को बहुत पास ले आती है...कि जैसे बीते पल बारिश की बूंदों में घुले, भीगी ठँडी हवा में तैरते, लौट आते हैं, आँखों को नम कर जाते हैं...
आज ३१ अगस्त ... मेरी परम प्रिय अमृता जी का पुण्य जन्म-दिवस ... वह भीगे पल मुझको पुन: नम कर गए।
कुछ भी तो नहीं भूला, भूलना नहीं चाहता, या भूल नहीं पाता हूँ। अमृता जी से प्रथम मिलन की जून १९६३ की उस सुखद आत्मीय मुस्कान से ले कर नवम्बर २००३ में टेलिफ़ोन पर उनके अंतिम शब्द, "कमज़ोरी बहुत आ गई है"..."मैं ज़्यादा बात नहीं कर सकती।"
स्मृतियों की इतनी आत्मीयता कि जैसे अमृता जी अभी भी यहाँ पास ही हैं, और ऐसे में अकस्मात असीम सूनेपन का आभास .. कि जैसे धधकते हुए सूर्य की किरणों के फैलाव में अचानक ग्रहण लग गया हो, या ज्वाला से यह आँखें चुंधिया गई हों, और अब इस अंधेरे के दायरे में मुझको कुछ भी दिखाई नहीं देता ... ऐसा क्यूँ? प्रिय अमृता जी का जन्म-दिन मैंने ऐसे तो नहीं मनाना था, कभी नहीं।
आज ३१ अगस्त ... मानो अमृता जी लौट आईं। जानता हूँ, यह दिन भी हर किसी और दिन के समान "कल" होते ही एक और कल हो जाएगा। अतीत के धागे की एक और लड़ी बन जाएगा, और सच यह भी है कि जाने से पहले यह दिन कितनों के दिल को हिला जाएगा ... वह कितने दिल कि जिनको मिलते ही अमृता जी हमेशां के लिए उन दिलों में समा गईं, उन दिलों की हो गईं ... दिल जो अमृता जी से मिलने के बाद पर्वत-से बुलन्द हो गए और अभी भी अमृता जी के समान अच्छा लिखने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित हो रहे हैं।
जीवन में अमृता जी की रुह बार-बार लगातार सूनेपन के कोनों से टकराई, और ऐसे में उनकी लेखनी और निखर आई। इतने दिलों में समाने वाली अमृता जी... उनकी रुह अब कभी अकेले में भटकेगी नहीं। अब यह धरती ही नहीं, आसमान भी उस अमर रुह का है, जो भीगी भूरी पहाड़ियों से आकर हम चाहने वालों की छाती में समाई आज जन्म-दिन के दिन आँखों को नम कर गई है।
स्मृतियों के मैदानों के फैलावों पर तैरती उस पावन रुह को मेरा शत-शत नमन !
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//आपकी लेखनी में उनका दर्द जितना सजीव लगता है शायद किसी और की में नहीं है .... बहुत भाग्यशाली है आप जो उनसे मिले...उन्हें देखा और अपनी याद में उनको भर लिया .... और जब भी लिखते है मन करता है और ज्यादा पढ़ने को मिले उनके बारे में .....//
मुझको अमृता जी के इतने समीप उनका दर्द ही लाया था... वह कैसे उसको सहज उंडेल देती थीं। ... और मुझमें भी उन्होंने कुछ ऐसा दर्द ही देखा जिस कारण वह स्वयं को सरलता से साझा कर देती थीं।
इतनी सराहना... इतना मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया प्रियंका जी।
//आप उन कुछ भाग्यशालियों में से रहे हैं जिन्हें उनका स्नेह मिला है. आपकी हार्दिक दशा मुखर हो कर हमारे सामने आयी है//
जी अमृता जी से मिलना मेरे लिए एक बहुत ही सुखद अनुभूति थी (है) ... उनका सरल स्वभाव, उनकी आत्मीयता, मुझ पर सदैव के लिए छाप छोड़ गए हैं।
आपने जिन शब्दों से मेरे उदगारों की अभिव्यक्ति को स्वीकार किया, उसकी लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ जी।
//यह जो स्मृति इस बार आपने सहेजी है वह काव्यात्मक तो है ही आपके ऊपर अमृता जी के प्रभाव का भरपूर निर्वाह करती है ....उनके पास एक विशाल सरस ह्रदय भी था जिसकी कुछ बूंदे आपके हिस्से में आयी i मै उन बूंदों का नमन करता हूँ और आपकी इस भावपूर्ण स्मृति को भी i शायद कोई बेटा भी इस तरह अपनी माँ को न याद करता होगा जैसा आपने अमृता जी को किया//
आपसे जब भी प्रतिक्रिया मिलती है, लगता है कि शब्द ही नहीं मिले, भाव ही नहीं मिले, आप से साक्षात मुलाकात हुई है। इतनी सराहाना और मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।
//सुन्दर वृत्तांत//
लेख की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।
आदरणीय सर ... पहले तो बहुत बहुत शुक्रिया एक बार फिर अमृता जी के बारे में अपने एहसासों से हमें रुबरु कराने के लिए .... सर आपके लिखे अमृता जी के पहले संस्मरण से ले कर इस व्याख्यान तक बहुत इंतज़ार कराया अपने पर हर बार की तरह इस बार भी पढ़ कर मैं उदास हो गयी .... वो नहीं है इस बात का दुःख हर बार होता है ... आपकी लेखनी में उनका दर्द जितना सजीव लगता है शायद किसी और की में नहीं है .... बहुत भाग्यशाली है आप जो उनसे मिले...उन्हें देखा और अपनी याद में उनको भर लिया .... और जब भी लिखते है मन करता है और ज्यादा पढ़ने को मिले उनके बारे में ..... बहुत बहुत आभार सर यूँही अमृता जी की याद साँझा करते रहे ....नमन ..
//आपकी लेखनी बरबस अपने साथ बहा लेने की ताक़त रखती है ..... जीवंत आलेख के लिए बधाइयाँ //
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी।
एक अत्यंत आत्मीय अनुभूति से परिचित कराने के लिए हृदय से धन्यवाद आदरणीय विजभाईजी.
अमृताजी की विशाल हृदयता का आप सरस शब्दों में साझा करते रहे हैं. अमृताजी के रूप में एक उन्नत साहित्यकार अपने हृदयाकाश को स्वयं के वैचारिक आकाश से एकवत कर हमारे आकाश की अनन्त सीमाओं में व्यापक हो गया है.
आप उन कुछ भाग्यशालियों में से रहे हैं जिन्हें उनका स्नेह मिला है. आपकी हार्दिक दशा मुखर हो कर हमारे सामने आयी है.
इस भाव-प्रधान भावोद्गार के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.
शुभ-शुभ
आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी लेखनी बरबस अपने साथ बहा लेने की ताक़त रखती है ,मैं तो मिला नहीं अमृता जी से लेकिन आपके साथ लगभग जी ही लिया उन पलों को | आपका बहुत शुक्रिया | और जीवंत आलेख के लिए बधाइयाँ |
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