जाओ पथिक तुम जाओ
(किसी महिला के घर छोड़ जाने पर लिखी गई रचना)
पैरों तले जलती गरम रेत-से
अमानवीय अनुभवों के स्पर्श
परिवर्तन के बवन्डर की धूल में
मिट गईं बनी-अधबनी पगडंडियाँ
ज़िन्दगी की
परिणति-पीड़ा के आवेशों में
मिटती दर्दीली पुरानी पहचानें
छूटते घर को मुड़ कर देखती
बड़े-बड़े दर्द भरी, पर खाली
बेचैनी की आँखें
माँ के लिए कांपती
अटकती एक और पागल पुकार
इस पर भी न हो उदास पथिक
तुम्हें करना है प्रतिपल पूरा प्रयास
बढ़ना है जैसे हो तुम अग्निरथ
तत्पर है प्राची में सूरज
ज्योतित करने को पथ
जाओ पथिक तुम जाओ, उदास न हो
समय नहीं है अननुभवी भूलों के
खुरदुरे तजुर्बों के गणित का अब
दुख, निराशा और नीरवता को तज
जाओ तुम नभ की सीमा को छू आओ
माना, दीखता नहीं कोई सपना अब अपना
पर न-अपनों से अनजाना-अनपहचाना
है कोई शुभचिंतक, कोई एक अपना
दीप्तिमान कर रहा है पथ को तुम्हारे
गिन रहा है अपनी साँसें, साँसों से तुम्हारी
आशा का दूत है वह
सत्य उसके सतही नहीं हैं
अन्त:स्तल में विराजा
यह आत्म-धन
आत्म-विश्वास है तुम्हारा
जाओ पथिक, जाओ अब तुम
लहरीली गति से बढ़ते जाओ
हर तिथि अर्थपूर्ण, महत्वपूर्ण करो
पथिक, तुम निर्भीक बढ़ते जाओ
आज नभ की सीमा को छू आओ ...
-----------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//बहुत सुंदर गहरी छाप छोडती रचना के लिए हार्दिक बधाई//
इस प्रकार मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई लक्ष्मण जी।
//शब्दों को कल्पना से टिकोर फिर दी आपने एक अविस्मरणीय प्रस्तुति
जो है आपकी एक पहचान जिसके लिए नमता है हमारा शीश श्रृद्धा से
क्योकि हे कवि तुम ही हो साक्षात् कविता और उसकी अंतर्भूत पीड़ा !//
इतनी स्वर्णिम, इतनी काव्यमय सराहना देकर आपने मुझको निशब्द कर दिया है। आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी।
//आपकी रचना में सदा ही गहन अनुभव से भाव पक्ष की प्रबलता एक सहजता ली हुई होती है//
कवि की कलम से यदि भावनाओं का निज अनुभव न छलके तो रचना पन्ने पर होते हुए भी जीवित नहीं हो सकती, किसी को छू नहीं सकती। रचना को सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय जितेन्द्र जी।
मेरे व्यक्तित्व के भिन्न पहलू को देखने के लिए और इस रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया विन्दु जी।
//इस कदर किसी के मन को पढना बेहद खुबसूरत ह्रदय वाला इन्सान ही कर सकता है ...गहरायी के साथ ...दिल के दर्द को बड़ी सहजता से उकेरा है आपने .....नमन आपकी लेखनी को .....//
इस कदर आपसे सराहना पाकर मन गदगद हो गया। हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया प्रियंका जी।
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय श्याम नारायण जी।
//गहरे अर्थों की इस सुन्दर रचना के लिए बहुत सारी बधाइयां//
रचना के भावों के अनुमोदन के लिए आपका आभारी हूँ, आदरणीय विजय शंकर जी।
//आशा और विश्वास भरा भाव ,बहुत सुन्दर//
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विजय प्रकाश जी।
माना, दीखता नहीं कोई सपना अब अपना
पर न-अपनों से अनजाना-अनपहचाना
है कोई शुभचिंतक, कोई एक अपना
दीप्तिमान कर रहा है पथ को तुम्हारे
गिन रहा है अपनी साँसें, साँसों से तुम्हारी-----यही आशा की किरणे मनुष्य को जीवंत रख संघर्ष करने को मजबूर करती है | बहुत सुंदर गहरी छाप छोडती रचना के लिए हार्दिक बधाई आद श्री विजय निकोरे जी
निकोर जी
शब्दों को
कल्पना से टिकोर
फिर दी आपने
एक अविस्मरणीय प्रस्तुति
जो है आपकी एक
पहचान
जिसके लिए नमता है
हमारा शीश
श्रृद्धा से
क्योकि हे कवि
तुम ही हो
साक्षात् कविता
और उसकी
अंतर्भूत पीड़ा !--------------------------------- सादर i
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