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जबसे मुझसे बिछड़ गया है वो
सबमें मुझको ही ढूढ़ता है वो
मैंने मांगा था उससे हक़ अपना
बस इसी बात पर खफ़ा है वो
मेरी तदवीर को किनारे रख
मेरी तक़दीर लिख रहा है वो
पत्थरों के शहर में जिंदा है
लोग कहते हैं आइना है वो
उसकी वो ख़ामोशी बताती है
मेरे दुश्मन से जा मिला है वो
संजू शब्दिता
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आशुतोष जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका
आदरणीय श्याम नारायण जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका
आदरनिया राजेश दी बेहद शुक्रिया आपका
आदरणीय जितेंद्र जी बेहद शुक्रिया आपका
आ0 सविता जी बेहद शुक्रिया आपका
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपका हार्दिक आभार
आदरनिया कल्पना दी बहुत बहुत शुक्रिया आपका
सुंदर गज़ल के लिए हार्दिक बधाई संजु जी
सुन्दर , भावपूर्ण गजल i
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