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ग़ज़ल - मेरी तक़दीर लिख रहा है वो

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जबसे मुझसे बिछड़ गया है वो

सबमें मुझको ही ढूढ़ता है वो

मैंने मांगा था उससे हक़ अपना

बस इसी बात पर खफ़ा है वो

मेरी  तदवीर को किनारे रख

मेरी तक़दीर लिख रहा है वो

पत्थरों के शहर में जिंदा है

लोग कहते हैं आइना है वो

उसकी वो ख़ामोशी बताती है

मेरे दुश्मन से जा मिला है वो

 

संजू शब्दिता

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on September 26, 2014 at 1:27pm

जबसे मुझसे बिछड़ गया है वो
सबमें मुझको ही ढूढ़ता है वो ii
ग़ज़ल अच्छी बनी है ,बधाई , आदरणीय संजू शब्दिता जी ,

Comment by savitamishra on September 26, 2014 at 12:34pm

बहुत बहुत  सुन्दर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 26, 2014 at 11:25am

मेरी  तदवीर को किनारे रख

मेरी तक़दीर लिख रहा है वो.......वाह! बहुत बेहतरीन शे'र कहा. विशेष रूप से बधाई आदरणीया संजू जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2014 at 10:27am

उसकी वो ख़ामोशी बताती है

मेरे दुश्मन से जा मिला है वो---वाह्ह्ह बहुत शानदार शेर 

इस सुन्दर ग़ज़ल पर दाद कबूलें प्रिय संजू जी 

 

Comment by Shyam Narain Verma on September 26, 2014 at 9:59am

" सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई ...... "

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 26, 2014 at 4:13am

मेरी  तदवीर को किनारे रख

मेरी तक़दीर लिख रहा  वो...इस सुंदर ग़ज़ल के इस शेर के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें सादर 

कृपया ध्यान दे...

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