फूल हमेशा बगिया में ही, प्यारे लगते।
नीले अंबर में ज्यों चाँद-सितारे लगते।
बिन फूलों के फुलवारी है एक बाँझ सी,
भरी गोद में माँ के राजदुलारे लगते।
हर आँगन में हरा-भरा यदि गुलशन होता,
महके-महके, गलियाँ औ’ चौबारे लगते।
दिन बिखराता रंग, रैन ले आती खुशबू,
ओस कणों के संग सुखद भिनसारे लगते।
फूल, तितलियाँ, भँवरे, झूले, नन्हें बालक,
मन-भावन ये सारे, नूर-नज़ारे लगते।
मिल बैठें, बतियाएँ इनसे, जी चाहे जब,
स्वागत में ये पल-पल बाँह पसारे लगते।
घर से बेघर कभी ‘कल्पना’ करें न इनको,
तनहाई में ये ही खास हमारे लगते।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी हार्दिक आभार
आदरणीया seemahari sharma जी बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय Shyam Narain Verma जी, बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय Neeraj Kumar 'Neer' जी बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय harivallabh sharma जी प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणी के लिए बहुत धन्यवाद
आदरणीय laxman dhami जी हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी बहुत बहुत धन्यवाद
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