जवान बेटा मरा था उसका I मातम फैला हुआ था परिवार में, परिवार के हरेक सदस्य में, सदस्यों के दिलों में I लेकिन, श्राद्धकर्म तो करना ही पड़ेगा, गाँववासियों को भोज तो खिलाना ही पड़ेगाI
आज उसी का भोज है I लोगों के घरों में चूल्हे नहीं जले हैं I भोज है, जबकि एक घर शोकाग्नि में तप रहा हैं और इसी तपन पर ऊफन रहा है - चावल, दाल, सब्जी ...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत मार्मिक लघु कथा .बधाई आपको
आदरणीय विवेक भाई , विषय बढ़िया चुना है , बधाई स्वीकार करें ! शिल्प के विषय में आ. बागी जी कहा ही चुके हैं |
विवेक जी, इस कृति को लघुकथा कहने में तनिक संकोच कर रहा हूँ, कुछ कुछ आलेख का अंश सा भान दे रहा है, इस प्रयास हेतु प्रोत्साहित करता हूँ , बधाई स्वीकार करें।
अच्छा प्रयास है।
बधाई विवेक जी !
बहुत मार्मिक एवम सुन्दर लघुकथा विवेकजी | बहुत बहुत बधाई..
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