For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वह कथा कहूँ जो नहीं कही

अम्बर में कलानिधि घूम रहा 

एक निर्झरिणी थी झूम रही 

लहरी थी तट को चूम रही |

अनवरत तरंगे बहती थी 

सब हंसी-ख़ुशी से रहती थी 

और शिला चोट सब सहती थी 

चल-चल, कल-कल कर कहती थी |

वह घटना हुई थी अकस्मात

रजनी के चौखट शुभ प्रभात 

और वेगमयी थी प्रबल वाट 

धारा को हुई थी अश्रुपात |

धारा ने अश्रु नयन लिया 

करबद्ध नदी से विनय किया 

अब आगे मैं नहीं बहूँगी 

तुमसे दूर मैं नहीं रहूँगी,

दूर जुदाई डंसती है 

सारंग की तरंगे हँसती है 

कह खारा पानी बस्ती है |

सुन धार व्यथा को निर्झरिणी 

अपने ही बगल में बिठलाया

जीवन जीने का मंत्र है क्या 

उसे बड़े प्यार से सिखलाया |

यह सबको पता है भली-भांति 

तुम कितना करते मुझे प्यार 

पर तब तक ही तेरा जीवन 

जब तक बहना तेरा व्यापार,

मैं कैसे दृष्टिपात करूँ 

बनता देखूँ तुझको तालाब 

बिछुड़न का गम रहता हरदम 

है मेरे अंदर भी सैलाब,

जीवन तेरा तो बहना है 

तू क्या जाने यह गहना है 

बस यही बात मुझे कहना है 

किसको आकर के रहना है,

बहता जा जब तक जीवन है 

भू पर जन्मा यह क्या कम है 

मत कभी कहो गम ही गम है 

अम्बर में चंदा हरदम है |

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 566

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 11, 2014 at 1:26pm

बहती धारा का नदिया से कहना कि नहीं बह कर जाना उसे... और नदिया का उसे समझाना की बहना ही उसका कर्तव्य है.. और इस कहन के अंत में जीवन जीने की सीख देना... अंतर्भाव के स्तर पर यह अभिव्यक्ति बहुत पसंद आयी मुझे आपको बहुत बहुत बधाई विवेक झा जी.

लेकिन कथ्य संयोजन बहुत बिखरा बिखरा सा लगा.. दुसरे बंद में वचन दोष भी दिखा.

इसी कथ्य को कम शब्दों में समेटने का प्रयास होना चाहिए था..ज्यादा प्रभावी रहता.

आप और साथी पाठकों की भी अतुकांत रचनाएं समझते बूझते पढ़ते जाएं..बहुत कुछ स्पष्ट होता चलेगा 

इस सद्प्रयास पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by विजय मिश्र on March 6, 2014 at 5:59pm
"बहता जा जब तक जीवन है
भू पर जन्मा यह क्या कम है
मत कभी कहो गम ही गम है
अम्बर में चंदा हरदम है |" - मन को स्पर्श करती सार्थक सन्देश देती सुंदर रचना |बधाई विवेकजी
Comment by Neeraj Neer on March 5, 2014 at 8:28pm

स सुन्दर रचना के लिए बधाई ..

Comment by Shyam Narain Verma on March 4, 2014 at 11:15am
बहुत सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई
Comment by Saarthi Baidyanath on March 4, 2014 at 10:57am

वह घटना हुई थी अकस्मात

रजनी के चौखट शुभ प्रभात 

और वेगमयी थी प्रबल वाट 

धारा को हुई थी अश्रुपात |..... क्या कहने ! वाह 

Comment by Meena Pathak on March 4, 2014 at 9:56am
Bahut sundar Rachna Badhai aap ko
Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 3, 2014 at 10:19pm

प्रिय अनुज एक कहानी को काव्यात्मक रूप देने का अच्छा प्रयास है..पर कहीं कहीं टूटन सी प्रतीत हुई..यह छंद कौन सा है..और अगर केचुआ छंद भी है तो भी लयबद्धता बाधित हो रही है..जैसे

धारा ने अश्रु नयन लिया 

करबद्ध नदी से विनय किया...इसमें यदि आप धारा ने आंसू नयन लिए..करबद्ध नदी से विनय किया

भी कहते तो भी लय नहीं टूटता..ऐसा मेरा मानना है..दूसरी बात कथ्य पर थोड़ा सा ध्यान दे दीजिए..कविता वंडरफुल हो जायेगी..  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service