For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवरात्रि के जश्न में कुछ सुलगते प्रश्न

 नवरात्रि के जश्न में कुछ सुलगते प्रश्न - डॉ हृदेश चौधरी  

हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार कुंवारी कन्याएँ माता के समान ही पवित्र और पूजनीय होती है साक्षात देवी माँ का स्वरूप मानी जाती है इसलिए “ या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता” भाव के साथ अष्टमी और नवमी के दिन कन्या (कंजिका) पूजन किया जाता है। वेदिक काल के पूर्व से ही कन्या पूजन का विधान रहा है और धर्मशास्त्रों में भी इस बात की स्वीकारोक्ति है कि कन्या पूजन से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। हमारा पूरा समाज शास्त्रों में कही गयी बातों का अक्षरशः पालन करता है फिर क्यों हम कन्या पूजन के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या जैसा जघन्य अपराध कर बैंठते हैं। देवी के नौ रूपों की पूजा अर्चना पूर्ण श्रद्धा-भाव के साथ करते हें, उनमे अधिकाशतः महिलाएं ही होती हैं जो कभी सास बनकर अपनी बहू से कन्या भ्रूण हत्या जैसा अपराध करने को विवश कर देती हैं। कहाँ विलुप्त हो जाता है उस समय कन्या पूजन का भाव? कैसी आस्था और कैसा विश्वास कि एक हाथ से कन्या पूजन का ढोंग वहीं दूसरे हाथ से कन्या भ्रूण हत्या। नारी के विविध रूपों कन्या, युवती,पुत्रवधू, पत्नी, माता, बहन आदि के बिना हम परिवार की कल्पना नहीं कर सकते हैं, और जब कन्या भ्रूण हत्या का ये सिलसिला अनवरत चलता रहेगा तो कहाँ से आएंगी कन्याएँ कैसे होगा आने वाले समाज का सृजन।

आज जब हमारा समाज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है और अंधविश्वास को छोड़ आधुनिकता की ओर बढ्ने का हम दावा कर रहे हें फिर उसी आधुनिक परिवार में कन्या जन्म की बात सुनकर हमारे चेहरे फक क्यू हो जाते हें। और अगर उस कन्या का जन्म नहीं हुआ तो मारने कि प्लानिंग भी उसी आधुनिक परिवार में की जाती हैं। यहाँ यह कहना मुनासिब होगा कि बड़े घरों में कन्या भ्रूण हत्याएँ ज्यादा होती हैं। वास्तविकता यह है कि हम असल ज़िंदगी में आधुनिक नहीं हुये।

भारतीय संस्कृति भी समाज को यही सिखाती है कि क्या कन्या पूजन से बड़ी कोई पूजा नहीं, शादी में कन्यादान से बड़ा कोई दान नहीं, माँ के चरणों के सिवा कहीं जन्नत नहीं और पत्नी को चारों धाम कहा गया साथ ही हम अर्धनारीश्वर कि पूजा करते हें। इन सब मे विश्वास करने वाले समाज से कैसे चूक हो जाती है, कैसे गलती कर बैठता। और आश्चर्य होता है कि कन्या भ्रूण हत्या, छेड़छाड़, एसिड हमले, यौन शोषण, दुष्कर्म, दहेज उत्पीड़न, ऑनर किलिंग, घरेलू हिंसा जैसे मामले रोज हमे अखबार में कभी पड़ौस में देखने और सुनने को मिल रहे हें फिर क्यू करते हें कन्या पूजन का दिखावा? जिस पूजन का सम्मान भी न कर सके? उसका जश्न बेमानी है। वास्तविकता की तराजू में जब हम खुद तुलते हैं तो श्रद्धा पर अंधविश्वास हावी हो जाता है। जिसके फलस्वरूप कभी कन्या भ्रूण हत्या तो कभी दहेज हत्या के गुनहगार बनकर सामने आकर खड़े हो जाते हैं।

आज़ादी के बाद से शायद यह पहला सुखद अवसर था कि स्वतन्त्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से देश के प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में बेटियों पर चिंता जताई है बातों ही बातों में प्रधानमंत्री ने यह संदेश दे दिया कि बेटियाँ समाज के लिए बेशकीमती हैं। अतएव कानून के साथ-साथ समाज का भी दायित्व है कि इस दिशा में भी प्रयास करें। जिस समाज की सोच इतनी असंवेदनशील है कि बेटियाँ को जन्म ही न लेने दे वहाँ उन्हें शिक्षित, शसक्त और सुरक्षित रखने के दावे, दावे भर ही रह जाते हें। दुखद ही है कि हमारे समाज में बेटियों का पूजन और वंदन है तो मानमर्दन भी है, जब बेटियों के सम्मान ही नहीं तो उनका सशक्तिकरण कैसे होगा? बड़े बड़े मंचों में सशक्तिकरण की दुहाई देने वाले ये बड़े लोग ही कन्या भ्रूण हत्या के सबसे ज्यादा पक्षधर होते हैं।

विचारणीय यह भी है कि भ्रूण हत्या और लिंगभेद के खिलाफ तमाम सरकारी जागरुक अभियान, कन्या सुरक्षा, और शिक्षा के नाम पर मीडिया और टीवी चैनलों पर प्रचार प्रसार का होना, राज्य सरकार द्वारा हेल्पलाइन चालू करना, इसके पश्चात भी देश की राजधानी जैसे बलात्कार सरेआम हो रहे हें आखिर क्या कमी रह जाती है कि तमाम प्रचार प्रसार और बड़ी बड़ी बातों के बावजूद भ्रूण हत्या और बलात्कार रुकने का नाम ही नहीं लेते। इन घटनाओं को देखने से तो नहीं लगता कि हम एक सभ्य समाज का निर्माण करने की सोच रहे हें और हमारा देश विकसित से विकासशील होने जा रहे हैं, विकास और सुशासन का हर वो वादा बेमानी है जबतक समाज को कलंकित होने वाली घटनाएँ होती रहेंगी। तेजी से आधुनिकता की ओर बढ़ता हुआ हमारा समाज भौतिकता और भोगविलास के दलदल में धँसता जा रहा है। अगर मंथन किया जाय तो प्रमुख वजह यही दिखाई देती है कि पाश्चात्यीकरण के साथ ही हम सभी भारतीय संस्कार और मूल्यों को भूलते जा रहे हैं। बुढ़ापे की लाठी हमको बस बेटा ही दिखाई देता है चाहे वो वृद्धाश्रम की दहलीज़ पर ले जाकर क्यू न खड़ा कर दे । बेटी हमेशा हमारे लिए पराया धन ही होती हैं जबकि जरूरत के वक़्त वो ही माँ बाप के काम आती हैं। एक तरफ किराये की कोख का बढ़ता चलन और दूसरी तरफ कन्या भ्रूण हत्या से उसी कोख का अपमान । किस मोड पर आकर खड़े हो गए हैं हम ।

मंगल फतेह करने का गौरव भी हम अपने नाम कर चुके है और तकनीकी क्षेत्र में भी बहुत आगे निकल चुके हैं बावजूद इसके हमारी सोच और मानसिकता आज भी स्थिर है और जो चीज़ स्थिर हो उसमें नकारात्मक भावना आ जाती है । इसी स्थिर सोच और नकारात्मक नजरिए को बदलने में हम कामयाब नहीं हो पा रहे हैं ये कैसा विरोधाभास है एक तरफ  कन्याओं की पूजा होती है और दूसरी तरफ कन्या भ्रूण हत्या और बलात्कार जैसी घटनाएँ। कुछ समय पहले तक गाँव मोहल्ले में किसी की बेटी को पूरे गाँव मोहल्ले की बेटी कहा जाता था और उसकी रक्षा पूरा गाँव करता था आज इक्कीसवी सदी तक आते आते स्थितियाँ ठीक इसके विपरीत हो गयी हैं आज पड़ौसी भी किसी की बेटी को अपनी बेटी के तुल्य नहीं समझता है रक्षा करना तो दूर की बात।

महिसासुरी मानसिकता के लोग बिना भय के समाज में रहते हें जिससे लगता कि आसुरी शक्तियाँ अपनी चरम पर हैं। कन्याओं का तिरस्कार और शोषण यूं ही बढ़ता रहा तो शायद फिर कोई कन्या काली का रूप धारण करेगी और सभी महिसासुरों का अंत करेगी तब जाकर सही मायनों में नवरात्रि का पर्व पूर्ण होगा। क्या हम सब नवरात्रि के इस पावन पर्व पर अपने आपसे यह वादा कर सकते कि हम सब कन्याओं के प्रति सकारात्मक सोच रखेंगे और उसकी सुरक्षा करेंगे और उनको समुचित मान सम्मान भी कन्या पूजन की तरह ही देंगे।

       

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 695

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2014 at 10:02am

बहुत अच्छा आलेख लिखा है आपने ,ये ऐसे प्रश्न हैं जो सदा से समाज में उभरते रहे हैं और समाज द्वारा ही दबाये गए हैं किन्तु अब वक़्त बदल रहा है नारी शिक्षा नारियों को जागरूक करने के साथ अपने ऊपर हुए अन्याय के खिलाफ सर उठाने की शक्ति दे रही है जरूरत है एक जुट होकर इन कुरीतियों का नाश करने की भ्रूण हत्या के खिलाफ जैम कर आवाज उठाने की जो जबरदस्ती भ्रूण हत्या करवाए जरूरत है उसको सलाखों के पीछे भिजवाने की न की नतमस्तक होकर इस अन्याय को बढ़ावा दें |बहुत बहुत बधाई आपको इस आलेख के लिए |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 4, 2014 at 9:40am

आपने एक बहुत ही गहन विषय पर अपना प्रश्न रख छोड़ा है. आदरणीय बागी जी के विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ, इस आलेख पर आपको हार्दिक बधाई आदरणीया डा.हृदेश जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 3, 2014 at 8:29am

आदरणीया डॉ साहिबा, कुछ प्रश्न ऐसे होते है जो सदैव सामयिक होते हैं, भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियाँ अधिकतर पढ़े लिखे और तथाकथित कुलीन परिवारों में है और इसको फाइनल टच देने का कार्य भी समाज के क्रीम प्रोफेसन के लोग अर्थात डाक्टर अंजाम देते हैं, चंद सिक्को की खनखनाहट इन्हे बहरा और अंधा बनाये हुए है, क्या कही जाय, नारी ही नारी को मारने पर तुली है। 
एक सामयिक आलेख पर बधाई प्रेषित करता हूँ , स्वीकार करें .

Comment by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 8:50pm

सत्य कहा आपने ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   उसे ही कुंभ आना है, पुन्य जिसको पाना है,…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   उसे ही कुंभ आना है, पुन्य जिसको पाना है, पहुँचे लाखों…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
21 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service