For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्राथमिक शिक्षा के डगमगाते कदम

विश्व गुरु कहलाने वाले भारत की बुनियादी शिक्षा सरकार के हाथों की कठपुतली बनकर रह गयी है। कहते हें बुनियाद जितनी मजबूत होगी, इमारत उतनी ही बुलंद होगी I इसी तरह प्राथमिक शिक्षा का स्तर जितना बेहतर होगा, देश के नौनिहालों का भविष्य उतना ही उज्जवल होगा । आज एक तरफ हम विकास की तमाम राहें क्यू न तय कर रहे हों और देश की तरक्की के लिए विदेशों के साथ दोस्ती का ख्वाब बेशक सज़ा रहे हो, लेकिन दूसरी तरफ  इन सबके साथ एक बहुत बड़ा कड़वा सच जो हम अपनी आंखो से देख रहे है वो है प्राथमिक शिक्षा का डगमगाता स्वरूप, जिसका असर देश के आने वाले कल पर पड़ना स्वाभाविक है। हम सब गाँव में बसने वाले करोड़ों बच्चों को निरक्षर होते देख रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा की नींव दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है, तरक्की के पायदान तय करना तो दूर हम जहाँ थे वहाँ ठहर भी न सके यह कशमकश मन में इसलिए भी रहती है कि अनेक महत्वकांक्षी  योजनाओं के बावजूद देश के प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों कि संख्या में लाखों की कमी आती जा रही है। तमाम सरकारी योजनाओं और जागरूकता अभियानों के बाद भी बहुत बड़ी तादात में बच्चों का प्राथमिक स्कूल से लगातार कम होना पूरी शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।

वैदिक काल से लेकर अब तक भारतवासियों के लिए शिक्षा का अभिप्राय यह रहा है कि शिक्षा जीवन के हर पहलू को रोशन कर तरक्की के मार्ग प्रशस्त करती है जिसकी शुरुआत प्राथमिक शिक्षा से होती है। अरबों रुपये खर्च होने के फलस्वरूप विकास की पहली कड़ी प्राथमिक शिक्षा अपने सफल अंजाम तक नहीं पहुँच पा रही है। इस बात को कहने में कतई गुरेज नहीं है कि शासन, प्रशासन और शिक्षा विभाग को कुम्भ्कर्णी नींद से जागना होगा, सिर्फ योजनाएँ बनाकर करोड़ो-अरबों रुपये बहाने से शिक्षा की गुणबत्ता को सुधारा नहीं जा सकता है। ज़रूरत है द्रढ़ इच्छाशक्ति की, जो कि एक ऐसी औषधि है जो पूरे तंत्र को ऊर्जावान बना सकती है, क्योंकि असंभव कुछ भी नहीं है। एक तरफ जब हम चुनिन्दा सरकारी विश्वविद्यालयों, अभियांत्रिकी, प्रबंधनीय एवं चिकित्सीय संस्थानों को उच्चस्तरीय और विश्वस्तरीय बना सकते हैं, जहां पर चंद सीटों में प्रवेश के लिए लाखों छात्र बैठते हों, वहीं दूसरी ओर सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति इतनी खराब क्यों है कि तमाम बजट बढ्ने के बावजूद इन विद्यालयों में शिक्षा लेना तो दूर कोई जरा भी आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्ति अपने बच्चों को इनमें प्रवेश नहीं दिलाना चाहता है और जो प्रवेश दिलवाते हैं उनकी आर्थिक मजबूरियाँ होती हैं, ऐसे बच्चों का भविष्य प्राथमिक शिक्षा को पूरा करने से पहले ही अपना दम तोड़ देता है ? इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि हमारे देश में किसी भी व्यक्ति के लिए उच्च शिक्षा एवं विकास का रास्ता उसकी खुद की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। देश का हर नागरिक भली-भाँति इस तथ्य से परिचित है कि किसी भी देश का कल उसकी आने वाली पीढ़ी ही निर्धारित करती है और अगर उसी शिक्षा को बहुत हल्के में लिया जाएगा तो क्या यह  देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होगा? अपने देश के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा को देखकर तो बस यही लगता है। प्राथमिक शिक्षा की तस्वीर का एक उदाहरण देखिये – कक्षा पाँच के विद्यार्थी न तो गणित का साधारण सा जोड़ और घटाना कर सकते हैं और न ही मातृभाषा में लिख-पढ़ सकते हैं। क्या इन बच्चों के कंधे पर अपने देश का भविष्य सौंप कर जाएंगे हम सब? देश की सियासत और उसको चलाने वाली नौकरशाही पता नहीं किस मद में हैं कि उसे अपने देश के इस भविष्य की परवाह तक नहीं है। कभी केंद्र सरकार और कभी राज्य सरकार एक दूसरे के कंधे पर अपनी जिम्मेदारियों का बोझ डालकर अपने दायित्वों से मुक्त होना चाहती हैं पर ज़रूरत है कि राज्य सरकारों को द्रढ़ इच्छाशक्ति से इस ओर कदम बढ़ाने की, क्यूँकि बजट कुबेर के खजाने जैसा और काम ढाक के तीन पात। जब केन्द्र सरकार ने प्राथमिक शिक्षा का अपना आवंटन लगभग दस गुना बढ़ा दिया तो इसके परिणाम भी आशातीत मिलने चाहिए, लेकिन हुआ इसका उल्टा। इस डगमगाते कदम के लिए जिम्मेदार कौन? प्राथमिक शिक्षा की बेहतरी के लिए साल दर साल बजट आवंटन करने वाला मानव संसाधन विकास मंत्रालय या शिक्षा के अधिकार कानून को मूर्तरूप देने वाले शिक्षाविद? वैसे प्राथमिक शिक्षा की कमान संभालने वाली प्रदेश सरकार  की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो केंद्र सरकार से मिलने वाले बजट का सदुपयोग करने में एक अच्छा माध्यम बन सके । जबकि प्रदेश सरकारें केंद्र से इस मद का हिस्सा तो पूरा ले लेती हैं। लेकिन स्थिति जस की तस रहती है। स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है कि अधिकांशत: विद्यालय में एक अध्यापक और एक शिक्षामित्र रहता है। या फिर पढ़ाने का काम अतिथि शिक्षकों के भरोसे डाल दिया जाता है। कुछ स्कूलों मे तो स्थिति यह है कि आधिकारिक तौर पर शिक्षक तैनात तो हैं लेकिन स्कूलों में पढ़ाने के लिए सरकारी शिक्षकों ने स्कूल के पास के गाँव से अपनी जगह किसी और कम पढे लिखे युवक को मासिक तौर पर यह ज़िम्मेदारी दे रखी हैं जिससे न वे समुचित शिक्षा दे पाते हैं, और न ही मिड–डे–मील जैसे प्रोजेक्ट को पूर्ण कर पाते हैं। सरकार नियम कानून बनाने में तो पूर्ण दायित्व का निर्वहन करती है तत्पश्चात अपना पल्ला झाड़ लेती है। शायद यही वजह है कि आज प्राथमिक विद्यालय की बदहाल स्थिति सबके सामने है। शासन से लेकर प्रशासन तक अपनी गतिविधियों की खानापूर्ति सिर्फ फाइलों में समेटकर रखते हैं। शिक्षा का स्तर कैसा होगा और कैसा होना चाहिए इसकी चिंता न तो राजनेता करते हें और न ही अधिकारी। व्यावहारिक रूप से अगर हम सोचें कि ऐसे कौन से कारण हें जिस कारण सरकारी प्राथमिक शिक्षा कि स्थिति हास्यास्पद बनी हुयी है, प्रत्यक्ष रूप से मुख्य कारण जो मुझे महसूस होता है वह यह है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी निरीक्षण करने से बचते हें और खास तौर से गाँव में जाने से पूर्ण परहेज करते हैं। सारा काम कुर्सी पर बैंठकर फाइलों में लिखित रूप से पूर्ण कर लिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षक वर्ग पूरी तरह से स्व्छंद और मनमानी करने में लगे हैं। स्थितियां बद से बदतर होते होते इस लंबे अंतराल में यह पाया गया कि जिस बुनियाद को मजबूत करने के सपने हम देख रहे थे उसकी एक-एक ईंट अंदर ही अंदर हिलने लगी है और आज पूरी सरकारी शिक्षा व्यवस्था पंगु बनकर रह गयी है। 

देश में आधारभूत शिक्षा की गुणवत्ता काफी चिंता का विषय बनी हुई है और अक्सर आये  दिन इस विषय पर विचार विमर्श होते रहते हें और लंबी चौड़ी बहसें भी होती हैं सभी का एक ही कहना होता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं, परंतु ये बात तो हम सभी जानते हैं  लेकिन जरूरत है सही दिशा निर्देशन की, द्रढ़ इच्छा शक्ति की। फिर हम कल्पना कर सकते हैं कि हमारे बच्चे आने वाले कल में पूरी दुनिया में अपने देश का नाम रोशन करने का  जज्बा रख सकेगें और एक बेहतर इंसान के रूप अपने समाज कि ज़िम्मेदारी का निर्वहन कर सकेंगे। गौरतलब है कि देश की संसद को प्राथमिक शिक्षा में आशातीत सुधार लाने एवं सभी बच्चों को साक्षर बनाने का स्वप्न आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा लक्ष्य था जो आज तक एक स्वप्न ही बना हुआ है, सोचा तो बहुत कुछ था हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने कि बुनियादी शिक्षा अपने राष्ट्र की जड़ों से जुडते हुये अपने स्वदेशी मूल्यों, संस्कृति, संस्कारों व परम्पराओं का पोषण करेगी। उस समय इस बात पर गौर भी नहीं किया गया होगा कि उम्मीद से ज्यादा वजट खर्च करने के पश्चात भी नामांकन की प्रक्रिया के आंकडों के लक्ष्य को पूरा करने में भी समकालीन सरकार असफल साबित होंगी।

निसंदेह आज राष्ट्र की प्राथमिक शिक्षा अपने सफल अंजाम के लिए चुनौती बना हुआ है बावजूद उसके सरकारी तंत्र, अधिकारीवर्ग व शिक्षकगण के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती है। अगर समय रहते राज्य सरकार ने अधिकारियों और शिक्षकगण की जबावदेही सुनिश्चित नहीं की तो शत प्रतिशत साक्षर करने की योजना सिर्फ योजना बनकर ही दम तोड़ देगी । हाशिये पर जा चुकी प्राथमिक शिक्षा को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार को अपनी अहम भूमिका निभानी ही होगी, तभी आने वाले कल की कहानी हमारे देश के बच्चे स्वर्णअक्षरों में लिख सकेंगे ।                                 ( मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 640

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on October 6, 2014 at 1:33pm
निश्चेष्ट सरकारें और मानसिक रूपसे लकवाग्रस्त अफसरशाही सर्वनाश पर तुली हुई है |ज्वलन्त समस्या है ,साधुवाद इसे मंच पर उठाने केलिए |
Comment by vandana on October 5, 2014 at 6:17am

आदरणीया हृदेश जी समस्या के बारे में आपने लगभग सभी पहलुओं पर बहुत अच्छी तरह प्रकाश डाला है | बहुत २ बधाई इस लेख के लिए 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2014 at 9:01pm

आदरणीया हृदेश जी , बहुत सही , ज्वलंत  समस्या को आपने अपने आलेख में उठाया है | आपको दिली बधाइयाँ |

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 2, 2014 at 5:36pm

आदरणीय डॉo हृदेश चौधरी जी ,
एक विचारणीय प्रश्न उठाया है आपने। आज ही नवभारत टाइम्स में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार विश्व उच्च शिक्षा के मानकों में प्रथम २०० उच्च शिक्षा केन्द्रों भारत के किसी भी विश्विद्यालय का नाम नहीं है। जो पहला नाम उस सूची में है वह भी २७६ वें क्रम के बाद है।
बात यह है कि हम अभी भी यह तय करने में लगे हुए हैं कि एक शिक्षा संस्था की मूलभूत अनिवार्यताएं क्या होती हैं , उससे भी अधिक तारीफ़ की बात यह है कि मूलभूत अनिवार्यताएं क्या होती हैं , इनकी बात वह करता है जिसका प्रायः शिक्षा से कोई सरोकार नहीं होता है। प्राथमिक, बेसिक, बुनियादी, प्रारम्भिक, और पता नहीं कितने नाम दे दिए हमने , शिक्षा की तो अब कोई बात ही नहीं करता है। हम तो सबको शिक्षा की बात करते हैं , बस। कैसे की बात हम करते ही नहीं।
बिना डॉक्टर के अस्प्ताल चल सकता है तो बिना शिक्षक के विद्यालाल क्यों नहीं चल सकता है। विद्यालय होना चाहिए , बस। एक बात और गौरवशाली अतीत से या प्रसंशनीय अतीत से वर्तमान चलायमान नहीं होता है। एक सर्वे कर डालिये , प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च , तीनों शिक्षा के कुच्छ कर्णधारों से विद्यालयों की मूलभूत अनिवार्यताओं के बारे में पूछ डालिये , उनकीं उपलब्धता के बारे में पूछ डालिये , शिक्षा के हालात पता चल जायेंगें।
सम्प्रति आपकी जागरूकता के प्रति आदर प्रकट करते हुए आपको इस लेख के लिए बधाई देता हूँ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service