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चौराहे-चौपाल हर जगह मिलते हैं बौराए लोग --- सुलभ अग्निहोत्री

चौराहे-चौपाल हर जगह मिलते हैं बौराये लोग
हमसे, तुमसे, इससे, उससे, सबसे आजिज आये लोग

बड़ी दिलेरी दिखलाते थे बिला वजह हर मौके पर
वक्त पड़ा तो सबसे पहले भागे पूँछ दबाये लोग

भाई का कंधा भी अपने कंधे से उठता देखा
कैसे उसके कद को छांटें, सोच-सोच पगलाये लोग

नुक्कड़-नुक्कड़ ढोल पीटते अपने सूरज होने का
सूरज जब निकला तो बरबस चुंधियाये अँधराये लोग

खुद ही तमगे गढ़े टांककर खुद ही अपने सीने पर
अपने चारण बने आप ही अपने पर इतराये लोग

.. सुलभ अग्निहोत्री

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 8, 2014 at 12:12am

भाई का कंधा भी अपने कंधे से उठता देखा
कैसे उसके कद को छांटें, सोच-सोच पगलाये लोग.......बस यही आज है. बधाई आदरणीय सुलभ जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 7, 2014 at 8:29pm
खुद ही तमगे गढ़े टांककर खुद ही अपने सीने पर
अपने चारण बने आप ही अपने पर इतराये लोग
बहुत ही सुन्दर , प्रशंसनीय , बहुत बहुत बधाई आo सुलभ अग्निहोत्री जी .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2014 at 7:58pm

भाई का कंधा भी अपने कंधे से उठता देखा 
कैसे उसके कद को छांटें, सोच-सोच पगलाये लोग----वाह्ह आज की क्रूर सच्चाई यही है 

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई आपको आ० सुलभ अग्निहोत्री जी |

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