चित्त की वृत्ति
चंचल है कदाचित,
यह मचलती
सूर्य के प्रकाश जैसी।
तन विषय विष से भरे
घट को पिए जो
खार के सागर
अहं के ज्वार उगले।
रोक दो वृत्ति
तमस को भेद कर -चित्त में
योग - अनुशासन
तुला पर तोलता है।
वृत्ति की आवृत्ति
निश्छल शून्य जब भी
दिव्य अद्भुत योग से
साक्षात मुक्ति।
आत्मा - परमात्मा
चित्त के उपज जो
एक खोली में रहें जीव जैसे-
काष्ठ में अग्नि,
जल में वाष्प संचय।
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 निकोर सर जी, कविता पर आपके आत्मिक व भावपूर्ण अनुमोदन से मेरा लेख सार्थक हुआ। आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 राजेश कुमारी जी, कविता पर आपके आत्मिक व भावपूर्ण अनुमोदन से मेरा लेख सार्थक हुआ। आपका हार्दिक आभार। सादर,
एक कठिन विषय पर आपने सुंदर भाव रचे हैं। हार्दिक बधाई, आदरणीय केवल जी।
आत्मा - परमात्मा
चित्त के उपज जो
एक खोली में रहें जीव जैसे-
काष्ठ में अग्नि,
जल में वाष्प संचय।---वाह्ह्ह ...बहुत सुन्दर आध्यात्मिक भावों से आप्लावित उत्कृष्ट रचना ...बहुत बहुत बधाई केवल जी.
आ0 गोपाल नरायन भाईजी, इस कविता पर एक बार फिर आपका स्नेह पाकर मैं धन्य हुआ। आपके स्नेह व सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 शिज्जू भाईजी, कविता की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 श्याम नारायन भाईजी, कविता की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 विजय भाईजी, जिस प्रकार हम सरसों के दाने से भी तुच्छ बीज में बृहद बरगद को वृक्ष नहीं देख पाते हैं, उसी प्रकार से काष्ठ अर्थात लकड़ी में अग्नि और पानी में वाष्प को हम तब तक नही देख पाते जब तक कि उसे जलाया अथवा गर्म न किया जाए। ठीक इसी प्रकार इस देह में आत्मा और परमात्मा सम्मिलित रूप से विद्यमान हैं, किन्तु हम उसे अहसास नहीं करना चाहते। कविता की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 जितेन्द्र भाईजी, पश्चाताप, त्याग और तपस्या से गहनतम अंधेरे को भी ज्योतिमय बनाया जा सकता है। इस जीवन में निराशा मात्र संशय तक ही सीमित होती है। आशा और धैर्य सदा विजय की राह पर आरूढ़ होते है। आपका हार्दिक आभार।
वाह वह केवल जी
क्या धाँसू कविता रची है i मै मुग्ध हूँ i
आत्मा - परमात्मा
चित्त के उपज जो
एक खोली में रहें जीव जैसे-
काष्ठ में अग्नि,
जल में वाष्प संचय।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online