For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चित्त की वृत्ति
चंचल है कदाचित,
यह मचलती
सूर्य के प्रकाश जैसी।


तन विषय विष से भरे
घट को पिए जो
खार के सागर
अहं के ज्वार उगले।


रोक दो वृत्ति
तमस को भेद कर -चित्त में
योग - अनुशासन
तुला पर तोलता है।


वृत्ति की आवृत्ति
निश्छल शून्य जब भी
दिव्य अद्भुत योग से
साक्षात मुक्ति।


आत्मा - परमात्मा
चित्त के उपज जो
एक खोली में रहें जीव जैसे-
काष्ठ में अग्नि,

जल में वाष्प संचय।


के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 12, 2014 at 5:18pm

आ0 निकोर सर जी,   कविता पर आपके आत्मिक व भावपूर्ण अनुमोदन से मेरा लेख सार्थक हुआ। आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 12, 2014 at 5:18pm

आ0 राजेश कुमारी जी, कविता पर आपके आत्मिक व भावपूर्ण अनुमोदन से मेरा लेख सार्थक हुआ। आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by vijay nikore on October 12, 2014 at 12:31pm

एक कठिन विषय पर आपने सुंदर भाव रचे हैं। हार्दिक बधाई, आदरणीय केवल जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 12, 2014 at 11:17am

आत्मा - परमात्मा
चित्त के उपज जो
एक खोली में रहें जीव जैसे-
काष्ठ में अग्नि,

जल में वाष्प संचय।---वाह्ह्ह ...बहुत सुन्दर आध्यात्मिक भावों से आप्लावित उत्कृष्ट रचना ...बहुत बहुत बधाई केवल जी. 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 11, 2014 at 11:42am

आ0 गोपाल नरायन भाईजी,   इस कविता पर एक बार फिर आपका स्नेह पाकर मैं धन्य हुआ। आपके स्नेह व सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 11, 2014 at 11:37am

आ0 शिज्जू भाईजी,   कविता की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 11, 2014 at 11:36am

आ0 श्याम नारायन भाईजी,   कविता की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 11, 2014 at 11:34am

आ0 विजय भाईजी,  जिस प्रकार हम सरसों के दाने से भी तुच्छ बीज में बृहद बरगद को वृक्ष नहीं देख पाते हैं, उसी प्रकार से काष्ठ अर्थात लकड़ी में अग्नि और पानी में वाष्प को हम तब तक नही देख पाते जब तक कि उसे जलाया अथवा गर्म न किया जाए। ठीक इसी प्रकार इस देह में आत्मा और परमात्मा सम्मिलित रूप से विद्यमान हैं, किन्तु हम उसे अहसास नहीं करना चाहते। कविता की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 11, 2014 at 11:27am

आ0 जितेन्द्र भाईजी,  पश्चाताप, त्याग और तपस्या से गहनतम अंधेरे को भी ज्योतिमय बनाया जा सकता है। इस जीवन में निराशा मात्र संशय तक ही सीमित होती है। आशा और धैर्य सदा विजय की राह पर आरूढ़ होते है। आपका हार्दिक आभार।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 5:19pm

वाह वह केवल जी

क्या धाँसू कविता रची है i मै मुग्ध हूँ i

 

आत्मा - परमात्मा
चित्त के उपज जो
एक खोली में रहें जीव जैसे-
काष्ठ में अग्नि,

जल में वाष्प संचय।

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service