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अहसास

मधुप की ट्रेन खुल चुकी था। छुट्टियों के बाद वह वापस नौकरी पर जा रहा था। माधवी से मोबाइल पर बात होते –होते रह गयी, माधवी का गला जैसे रुँध गया हो। कुछ देर की चुप्पी के बाद वह  ‘ठीक है ....’ ही कह पायी थी।मधुप भी अतीत की स्मृतियों में खोने लगे,   ‘कितना खयाल रखती है माधवी उसका तथा परिवार के सभी लोगों का ? वह तो छोटी –छोटी बातों पर भी चिढ़ जाता है। तब माधवी कितने शांत लहजे में कहती है कि भला ऐसा क्या हो जाता है उन्हें कभी –कभी? बच्चों की तकलीफ जरा भी बर्दाश्त नहीं आपको। अभी कल ही क्या हुआ छोटी परी बुखार से पीड़ित थी, अचानक रोने लगी, मधुप की निद्रा उचट गयी। हुआ कि लगता है बच्ची पेट –दर्द से परेशान है, डाक्टर को मिलना चाहिए। माधवी आश्वस्त थी कि उसे पेट –दर्द तो नहीं है। एक माँ बखूबी बच्चे की तकलीफ समझती है। मधुप को लगा वह बेवजह की जिद कर रही है। उसने जरा ज़ोर से ही कह दिया कि आप जिद न करें, फिर सदा की भाँति खिन्न भी होता चला गया। वह खिन्नता के घेरे से निकल जाना चाहता था, पर एक झिझक जैसे जकड़े हुए थी उसे। पर माधवी की  व्यवहार जनित उष्णता से खिन्नता का हिम–खंड पिघल गया । फिर शाम हुई। दोनों चाय पी रहे थे और हँसते –हँसते माधवी बेटी से कह रही थी कि ये मुझसे आज ज़ोर से बोले। और मधुप उसे सहलाने –बहलाने की कोशिश कर रहा था, ‘बुरा मान गईं न आप?’

मधुप सोचता जा रहा था कि  आज कौन स्त्री इतना त्याग करती है भला ? घर –परिवार की देख्भाल के आगे अपना खयाल रखना ही छूट जाता था। इसके चलते भी कभी–कभी दोनों में कुछ अनबन –सी हो जाती थी। खैर अब अपना खयाल रखने लगी है।

 जब ब्याहकर आयी थी, तो मधुप का घर उतना अनुकूल  नहीं था। एक संभ्रांत घर की बेटी और यह साधारण –सा गरीब परिवार था। पर उसने अहसास न होने दिया किसीकों कि वह एक इतर किस्म के माहौल में आ गयी है। यहाँ तो रोज ही किचकिच होती रहती थी। लेकिन माधवी तो बस मधुप का मुँह देखती और निहाल रहती कि मेरे पास सबकुछ है जो मुझे चाहिए। कोई भी अभाव, कोई भी किचकिच मेरे निमित्त के आड़े नहीं आ सकते। जिसे चाहना चाहिए वह मुझे चाहता है बस।

                     "मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Shubhranshu Pandey on October 28, 2014 at 11:41am

:)

Comment by Manan Kumar singh on October 12, 2014 at 11:01pm

इसे लघु कथा कह लें हम। 

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