इश्क बेक़रार करता,खूब बेक़रार करता,
कहते मर जायेंगे,न कोई बेक़रार मरता।
तौबा करेंगे, हद हो गयी राह तकने की,
मुरीद-ए-इश्क,बे-इंतहा इन्तजार करता?
हुआ-सो-हुआ,न करेंगे इश्क,खूब अकड़ता,
क्या पता फिर क्यूँ इश्क बार-बार करता?
मरने की ख़्वाहिश कहीं पालता है कोई?
कैसे कहें क्यूँ इश्क पर बार-बार मरता?
इश्क का कायल,कह देते,टूट जाता आदमी,
पर,दिखता खुद से लड़ता,सरहदों पे मरता।
*"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आभार आदरणीय बागीजी, गोपाल भाई तथा जितेंद्र जी।
बहुत ही खुबसूरत गजल कही है आपने, आदरणीय मनन जी. बधाई आपको
तौबा करेंगे, हद हो गयी राह तकने की,
मुरीद-ए-इश्क,बे-इंतहा इन्तजार करता--------- सुन्दर गजल i
बढ़िया प्रयास है मनन कुमार जी, बधाई।
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