एक छईण्टी आलू
बात पुरानी है , गाँव से जुड़ी हुई । बटेसर के काका यानि पिताजी विद्या बोले जाते थे । सब उनको बाबा कहते तथा बटेसर को काका । लिखने –पढ़ने के नाम पर बाबा का बस अंगूठे के निशान से ही काम चल जाता था , पर अच्छे –अच्छों को बातों में धूल चटा देना उनके बायें हाथ का खेल था ।बथान में बैलों को सानी (खाना –पानी ) दे रहे बटेसर से बात करते –करते भोला को कुछ याद आया, तो वह कुएँ से पानी निकलते बाबा की ओर मुड़कर बोला , ‘ बाबा ! उ महेसर भाई के आलू के का कहानी बा?’
‘अरे बुरबक ! एक ही बात कितनी बार तू सुनना चाहता है रे ? पहले भी सुन चुका है । अभी तो गनेसी भी सुनकर गया है’।
गनेसी यानि अपने पिता का नाम सुन भोला थोड़ा ठमक गया । फिर इधर –उधर की बातें होने लगीं । तबतक गंगू आ गया । वह तो लोगों के खेतों से फसल उड़ाने के लिए ही मशहूर था । कलाकार तो ऐसा कि बड़े पोखर पर पुलिस का पहरा था कि कहीं कोई मछलियाँ न पकड़ ले । नीचे पुलिस रातभर पहरा दे रही थी और पोखर के किनारे के ही पेड़ पर चढ़कर गंगू ने पोखर में वंशी डाल दी और बड़ी –सी बराड़ी खींचकर सुबह पुलिस वालों को सलाम ठोकता निकल गया ।
गंगू को देख आलूवाली बात फिर गरमाने लगी । आखिर बाबा को कथा दुहरानी पड़ी । बोले , ‘रे देखो भाई ! बात कोई बड़ी नहीं, फिर भी समझो बड़ी ही है । अरे गाँव की हाट से जग्गू मास्टर साहब लौट रहे थे । महेसर बाबू के आलूवाले खेत की पगडंडी से गुजरते हुए उनकी नजर मिट्टी फाड़कर बाहर झाँकते लाल –लाल आलुओं पर क्या पड़ी कि पाँव जहां –के –तहां ठिठक गये । लाल आलू के चोखा का स्वाद जीभ को बेताब करने लगा । बेबस हो बेचारे बैठ गये, हाथ अनायास ही बरबस बाहर झाँकते आलुओं तक पहुँच गये । गाँव के लोग भी देख रहे थे कि मास्टर साहेब बैठे हैं मेड़ पर, थके होंगे पैदल चलने से । रिटायर आदमी ठहरे बेचारे। पर बात तो अलग थी । मास्टरजी लाल –लाल आलुओं का संग्रह कर चलने को हुए तबतक महेसर अपने द्वार से चलकर खेत तक आ चुके थे । मास्टरजी को देखकर बोले , ‘अरे साहब यह क्या ? कितना कष्ट हुआ आपको ?’
जग्गू बोले, ‘नहीं, नहीं। महेसर जी, कोई कष्ट नहीं । लाल आलुओं का चोखा बड़ा अच्छा होता है, सो हमने सोचा कि कुछ ले लेते हैं’।
महेसर बोले, ‘अरे बाबू साहेब ! आप बोलते हम पहुंचवा देते न । आइये, आइये चलिये’।
फिर दोनों बातें करते चल पड़े ।
बाबा फिर कहने लगे, ‘कल होकर महेसर बाबू का आदमी माथे पर एक छईण्टी लिए जा रहा था। मैंने पूछा तो बोला कि जग्गू मास्साब के यहाँ आलू ले जा रहे हैं, वही लाल –लाल वाले । कल जग्गू बाबू खुद ही न आलू निकाल रहे थे महेसर बाबू के खेत से, सो मालिक आज बोले कि ले जा भर छईण्टी आलू दे आ बेचारे के यहाँ । लाल आलू का चोखा पसंद है उन्हें । वही ले जा रहा हूँ । पर बाबा ! मालिक बोले थे किसीको बताना मत। भला मैं क्यों बताऊँ किसीको ?’
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
धन्यवाद आदरणीय, प्रभाकरजी।
ऐसा प्रतीत होता है कि मेरी ओबीओ पर पोस्ट की हुई रचनाएँ हवा हो जा रही हैं;वाल पर दिखती नहीं हैं।
अच्छा प्रयास है, प्रयासरत रहें।
बाबा भारती और डाकू खडग सिंह की कहानी याद आ गयी i सुदर्शन चक्र की कहानी में डाकू ने बाबा का घोड़ा जबरन छीना तब बाबा ने कहा ले तो जा रहे हो पर यह मत किसी से कहना कि छीन कर ले जा रहे हो वरना गरीब पर कोई विश्वास नहीं करेगा i इस कहानी में निहितार्थ था पर आपकी कहानी एक नवल प्रयास है i प्रयास के लिए शुभ कामना i लेखनी मंजते -मंजते ही मजती है i लेखन चालू रहे i
सोमेश जी, पात्रानुकूल भाषा का अपना अर्थ होता है।
शायद यह एक प्रकार की किस्सागोई है जिसमे देसज शब्दों का भरपूर प्रयास किया गया है |पर लेखन के प्रयास के लिए आप का स्वागत है |और ये प्रयास सराहनीय है |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online