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लघुकथा : आस्तीन

"अरे, बड़ा अजीब सा नाम लगा इस बंगले का, आस्तीन भी कोई नाम है !" शहर में नए आये व्यक्ति ने दोस्त से पूछा !

"जी, ये बंगला जिन्होंने बनवाया वो अब वृद्धाश्रम में रहते हैं !"

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 17, 2014 at 8:35pm

वाह्ह्ह कितने कम शब्दों में कितनी बड़ी बात कह दी जबरदस्त शीर्षक ,एक सशक्त लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आपको 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 17, 2014 at 11:33am

नीलेश जी

अभी 'उलट गीता ' की प्रशंसा की ही थी कि आपकी दूसरी सशक्त रचना i  योगराज जी के कथन के बाद कुछ बाकी नही रह जाता i  सस्नेह i


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 16, 2014 at 8:39pm

ये एक ऐसी लघुकथा है भाई नीलेस जी, जिसे 5-7 साल बाद पढ़ने पर भी आपको गर्व होगा, जैसा कि मुझे अभी आप पर हो रहा है. जीते रहो.

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