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अपनी दिवाली (लघुकथा)

"माँ ! आज मैं सुबह ही सभी के घर जाकर,  दियो में बचे हुए तेल इकठ्ठा कर लाया हूँ,
आज तो पूड़ी बनाओगी ना? "

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Pawan Kumar on November 6, 2014 at 2:21pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी सादर अभिवादन, उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 10:58am

बहुत खूब भाई पवन कुमार जी।
भाई दीपक मशाल जी, ओबीओ पर बिना सोचे समझे टिप्पणी दिए जाने वाली आपकी बात से मैं कुछ हद तक सहमत हूँ, लेकिन पूरी तरह नहीं। हमारा उद्देश्य ऐसा कभी नहीं रहा, आश्वस्त रहें। और वार्तालाप शैली में लघुकथा कहने का प्रचलन कोई आज से नहीं है, बल्कि इसे लघुकथा की एक खूबी भी माना जाता है बशर्ते कि लघुकथा अपना सन्देश देने में सफल रहे।

Comment by Pawan Kumar on November 1, 2014 at 10:31am

आदरणीया विन्दु जी सादर अभिवादन, प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार!

Comment by Vindu Babu on October 30, 2014 at 9:32pm

कथ्य मार्मिक है आदरणीय पवन जी।

सादर शुभकामनाएँ

Comment by Pawan Kumar on October 30, 2014 at 5:32pm

आदरणीय श्री शरदिन्दु मुकर्जी जी सादर अभिवादन,  आपने कथा पर अपना अमुल्य समय दिया जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद, उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार!

Comment by Pawan Kumar on October 30, 2014 at 5:31pm

आदरणीय डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन, आपने लघुकथा की इतनी विस्तृत जानकारी दी जिसका मुझे जरा भी ज्ञान नही था, अब तो उत्साह और बढ गया जिससे रचनाकर्म में सहयोग मिलेगा। भविष्य में यूँ ही सस्नेह मार्गदर्शन करते रहिएगा, कथा को स्वीकारने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, हार्दिक आभार!

Comment by Pawan Kumar on October 30, 2014 at 5:31pm

आदरणीय सोमेश जी सादर अभिवादन, प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार।

Comment by Pawan Kumar on October 30, 2014 at 5:30pm

आदरणीय दीपक जी सादर अभिवादन, आप सभी की टिप्पणियों से जिज्ञासा बढ जाती है और परत दर परत खोलकर किसी भी रचना की गहराई तक जाने की इच्छा होती है, बहुत कुछ सिखने को मिलता है।
रचना पर समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! सादर आभार!

Comment by Pawan Kumar on October 30, 2014 at 5:30pm

आदरणीय जितेन्द्र भईया सादर अभिवादन, प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on October 27, 2014 at 2:57am
बहुत सुंदर. आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी ने अपने सुस्पष्ट विचार रखे हैं और उनसे मैं पूरी तरह सहमत हूँ. भाई पवन जी आप अपनी सोच और उस सोच से उद्गत सृजन को अपने पथ पर अग्रसर होने दें....आलोचना अथवा टिप्पणियाँ उन्हें भ्रमित न करने पाएँ. आपकी रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी. शुभकामनाएँ.

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