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पुष्य नक्षत्र की शुभ बेला में, श्री लक्ष्मी का अवतार हुआ

महक फैलाती आई कमला, तो गुरु नक्षत्र भी धन्य हुआ|

 

दाता भी है रिद्धि सिद्दी के, सुख सम्रद्धि जो लेकर आये  

माँ शारदे भी संग बैठी, ज्ञान पिपासू प्यास बुझायें |

  

बरकत करती धन वैभव की, जो धन धान्य से घर भरदें

दीपो का त्यौहार मनाते, आँगन माँड़ रँगोली सज दे |

 

घर लक्ष्मी प्रसन्न जब रहती, तब लक्ष्मी का वरदान मिले

बिन गणपति और ज्ञानेश्वरी, फिर उल्लू ही साक्षात् मिले |

 

घोर अमावस की काली छाया, ज्योति जलाने से छट जाए  

प्रेममयी ज्योतिर्मय ज्वाला, घरभर को रोशन कर जाए |

 

तुलसी के से श्लोक रचे तो, सबके उर उजियाला छाए 

काव्यलोक से सबके मन में, ज्ञान चेतना घर कर जाए  |

 

अश्क से बरसे नेह सदा ही, आशा का मै दीप जलाऊँ,

दो लक्ष्मी वरदान मुझे ये, सबके उरमे ज्योत जलाऊँ |

(मौलिक व अप्रकाशित)

लक्ष्मण रामानुज लडीवाला 

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