For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिक्र तेरा भी करूँ,पर कौनसे हक़ से

लोग हैं सब पत्थरों के आजकल मैं भी
बार करते ख़न्जरों के आजकल मैं भी

लुट गयीं अब तो बहारें, सब शज़र सूखे
गीत लिखता बन्जरों के आजकल मैं भी

मुफलिसी देखी कभी फुटपाथ पर रोती 
लोग देखे बे-घरों के आजकल मैं भी

दर्द को गाते हुये देखा फकीरों को
हो गये जो दर-दरों के आजकल मैं भी

आसमाँ छूने चला हूँ जिद़ पुरानी है
उड़ रहा हूँ बिन परों के आजकल मैं भी
 
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित 


Views: 774

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 8:05pm

आ. उमेश भाई , अब तो मतले मे ही काफिया दोष आ गया है , पत्थरों और सरफिरों को काफिया नही लिया जा सकता , समान हिस्सा रों हटाने के बाद स्वर मिलना भी ज़रूरी होता है , जो समान हिस्स- रों - हटाने के बाद ,पत्थरों में अ है और सिरफिरों मे इ है । आपको सभी काफिये अरों आने वाले शब्दों का या इरों उच्चारित होने वाले शब्दों का लेना चहिये । आपकी गज़ल के के हिसाब से मुझे अरों काफिया लेना सरल लगता है , जादा शे र आपके अरों काफिया के हैं । परों , दरों , घरों , पत्थरों , बंजरों , खंजरों ऐसे ही शब्द सही रहेंगे ।

Comment by umesh katara on November 1, 2014 at 6:48pm

भाईसाहब गिरिराज की कृपया एकबार और देख लें अब सही है क्या

Comment by umesh katara on November 1, 2014 at 2:15pm

शुक्रिया जितेन्द्र गीत साहब

Comment by umesh katara on November 1, 2014 at 2:14pm

शुक्रिया गिरिराज भण्डारी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 11:42am

आ. मुकेश भाई , बढिया ग़ज़ल हुई है , दिली बधाई स्वीकार करें ।

आदरणीय , दूसरे , तीसरे और चौथे शे र मे काफिया ग़लत ( इरों और उरों ) है , बाक़ी शे र को  - अरों  काफिया मे  बान्धा है , देख लीजियेगा ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 1, 2014 at 10:06am

बेहतरीन मतले के साथ, बहुत लाजवाब गजल आदरणीय उमेश जी. इं दो अश आर पर आपको विशेष बधाई

जिक़्र तेरा भी करूँ, पर कौनसे हक़ से
साथ है तू शातिरों के आजकल मैं भी

आसमाँ छूने चला हूँ जिद़ पुरानी है
उड़ रहा हूँ बिन परों के आजकल मैं भी

Comment by umesh katara on October 31, 2014 at 7:24pm

शुक्रिया सुशील सरना जी

Comment by Sushil Sarna on October 31, 2014 at 11:56am

जिक़्र तेरा भी करूँ, पर कौनसे हक़ से

साथ है तू शातिरों के आजकल मैं भी … वाह हर शेर की अपनी महक, अपना वज़ूद, अपने मायने .... दिल को भा गयी आपकी ये खूबसूरत अल्फ़ाज़ों में ढली खूबसूरत ग़ज़ल … हार्दिक बधाई आदरणीय

Comment by umesh katara on October 30, 2014 at 9:41pm

shukriya Baidynath saarthi ji

Comment by umesh katara on October 30, 2014 at 9:40pm

शुक्रिया भाईसाहब narendrasinh chauhan ji

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
6 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
7 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
19 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service