For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उमेश कटारा-ग़ज़ल

मेरे हक़ में,खि़लाफ़त में, कोई तू फैसला तो दे
सज़ा-ऐ-मौत ही दे दे ,मेरे मुन्सिफ़ सज़ा तो दे

हुनर तेरा तू ही जाने ,बसाकर घर उज़ाडा है
लगाकर आग़ हाथों से,मेरे घर को ज़ला तो दे

व़फादारी तेरी आँखों में अब ढ़ूँढ़े नहीं मिलती
नज़र गद्दार है तेरी ,ज़रा इसको झुका तो दे

मेरे ही वास्ते तूने सज़ाकर जहर का प्याला
रख़ा है घोलकर कब से जरा मुझको पिला तो दे

चला में छोड़ के दुनिया मुबारक़ हो जहाँ तुझको
तसल्ली मिल गयी होगी, जरा अब मुस्क़रा तो दे 

मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा










 

 

Views: 710

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on December 21, 2014 at 9:24am

शुक्रिया मिथिलेश वामनकर साहब


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2014 at 5:16am

व़फादारी तेरी आँखों में अब ढ़ूँढ़े नहीं मिलती
नज़र गद्दार है तेरी ,ज़रा इसको झुका तो दे....बेहतरीन ग़ज़ल का उम्दा शेर....बधाई आपको 

Comment by umesh katara on November 5, 2014 at 8:58am

शुक्रिया बैद्यनाथ सारथी जी

Comment by umesh katara on November 5, 2014 at 8:57am

शुक्रिया आलोक मित्तल जी

Comment by Alok Mittal on November 3, 2014 at 1:09pm

बहुत सुंदर ग़ज़ल आपकी वाह्ह

Comment by Saarthi Baidyanath on November 1, 2014 at 10:33pm

तसल्ली मिल गयी होगी, जरा अब मुस्क़रा तो दे ...क्या अंदाज़ ! बहुत खूब आदरणीय  ! मुबारकबाद !

Comment by umesh katara on November 1, 2014 at 2:12pm

शुक्रिया Narendrasinh chauhan sahb

Comment by umesh katara on November 1, 2014 at 2:11pm

शुक्रिया निलेश नूर साहब

Comment by umesh katara on November 1, 2014 at 2:11pm

शुक्रिया गिरिराज भण्डारी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 11:36am

आ.मुकेश भाई , बहुत खूब सूरत गज़ल कही है , दिली बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
2 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
3 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
6 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service