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लघुकथा : दृष्टिकोण (गणेश जी बागी)

"हेलो, हाँ डॉक्टर साहब ! नमस्कार, बिटिया की शादी का निमंत्रण कार्ड भिजवा दिया है, भाभी जी और बच्चो को लेकर अवश्य आइयेगा"

"जी भाई साहब, नमस्कार, कार्ड मिल गया है, श्रीमती जी बच्चो के साथ जायेंगी, मैं न आ सकूँगा, आपको तो पता ही है शहर में डायरिया फैला हुआ है"

"हां, वो तो है, पर आपकी भगिनी की शादी है, कमसे कम दो दिन का भी समय निकालिये"

"माफ़ी चाहूंगा भाई साहब, सीजन चल रहा है यही तो दो पैसे कमाने के दिन हैं"

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : रुतबा

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 1:43am

मारा दिमाग में झन्नाट... पाठक का कोमल ह्रदय डॉ साहब के शादी में न जाने का कारण उसका कार्य के प्रति समर्पण सोच रहा होता है तभी ये पंक्ति दिमाग को करंट वाला झटका देती है- 

"माफ़ी चाहूंगा भाई साहब, सीजन चल रहा है यही तो दो पैसे कमाने के दिन हैं"


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 11, 2014 at 12:33am

क्षेत्र में डायरिया के फैल जाने की बात एक डॉक्टर के ललाट पर बल का कारण न हो बल्कि उसके लिए आमदनी का माहौल बन कर आये तो यह नैतिक पतन ही नहीं बल्कि वैयक्तिक वैचारिक पतन का भी द्योतक है. लेकिन ऐसा व्यवहार या आचरण अपने समाज में व्यापक है.

इस कथा में इस विन्दु को जिस संवेदना और कलात्कता के साथ उकेरा गया है, वह भाई गणेश जी के लेखन की प्रबुद्धता तथा गहराई को सामने लाता है.

एक गहन परख को शाब्दिक करने के लिए हृदय से बधाई तथा अनेकानेक शुभकामनाएँ..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 10, 2014 at 4:10pm

लघुकथा पसंद करने हेतु आभार प्रिय राम भाई।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 10, 2014 at 4:09pm

आदरणीय अखिलेश भाई साहब, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है,बहुत बहुत आभार आदरणीय।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 10, 2014 at 4:07pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, लघुकथा पर आपकी सराहना प्राप्त हुई, लेखन कर्म सार्थक हुआ, आभार आपका।

Comment by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 2:37pm

ज़ोरदार व्यंग आदरणीय  गणेश जी//बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको //सादर 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 7, 2014 at 11:49am

आदरणीय गणेश भाईजी,

डाक्टरों में अब सेवा भाव नहीं , लूट का भाव है । भारत की आबादी कम करने में व्यापारिक बुद्धि के ये डाक्टर बहुत बड़ा सहयोग दे रहे हैं।  हार्दिक बधाई इस लघु कथा के लिए , मेरी दो पंक्तियों के साथ ............ 

देश में लाखों लुटेरे डाक्टर, ऐश करते हैं सारे  डाक्टर ?

जो गरीब पैसे न दे सके, स्वर्ग धाम पहुँचाते  डाक्टर ॥  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 5, 2014 at 5:37pm

आदरणीय लडीवाला साहब, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धक है, प्रोत्साहन हेतु हृदय से आभार ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 5, 2014 at 5:36pm

आदरणीय गिरिराज भाई साहब, लघुकथा पर आपकी प्रोत्साहित करती टिप्पणी प्राप्त हुई, लेखन कर्म सार्थक हुआ, बहुत बहुत आभार आदरणीय।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 5, 2014 at 5:34pm

आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी ।

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