For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : रुतबा (गणेश जी बागी)

संजना लाल सुर्ख जोड़े और गहनों में नयी दुल्हन सी लग रही थी, मुहल्ले की औरतों के साथ करवा चौथ की पूजा कर वो अभी घर लौटी ही थी कि उसकी सहेली रेशमा आ गयी।
"अरे वाह संजना, बड़ी सुन्दर लग रही है, तेरा प्यार भी गज़ब है, तीन साल से डाइवोर्स का केस चल रहा है, दो चार महीने में तुम्हे डायवोर्स भी मिल जाएगा फिर भी तुम राहुल की लम्बी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रख रही हो !"
"ऐ.…… हलो !! राहूल ....... माय फूट !!" उस कमीने की लम्बी उम्र के लिए मैं व्रत रखूँगी ? मैं तो यह सोच कर व्रत कर लेती हूँ कि नये फैशन के गहने और कपड़े मुहल्ले की औरतें देख भी लेंगी और मेरा रूतबा भी बना रहेगा ।"

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : गुब्बारा

Views: 1057

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Omprakash Kshatriya on October 27, 2018 at 6:01pm

आदरनीय गणेश बागी जी , समय की नब्ज़ पर हाथ रख कर लघुकथा लिखी है. हार्दिक बधाई इस शानदार लघुकथा के लिए .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 1:46am

गज़ब व्यंग्य .... सधी हुई संतुलित लघुकथा  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 11, 2014 at 12:47am

वाह ! ..  :-))

का हो !..  ग़ज़ब-ग़ज़ब-ग़ज़ब.. !! ..

एह लघुकथा के विन्यास, तथ्य, कथ्य, संवाद आ उद्येश्य के प्रस्तुतीकरण में संतुलन देखि के मन खुश भ गइल बा..

बहुत-बहुत बधाई, गनेस भाई.. बहुत-बहुत बधाई.. !

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 16, 2014 at 2:40pm

आदरणीय गणेश भाईजी

फैशन की मारी, अति आधुनिक नारी , न होगी कभी अभागिन । 

पति बेचारा रहे न रहे , कोई फर्क न पड़े , रहती सदा सुहागिन ॥ 

लघु कथा पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2014 at 1:30pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया वंदना जी। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2014 at 1:29pm

सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय सोमेश जी।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2014 at 1:28pm

आदरणीया डॉ प्राची साहिबा, लघुकथा पर आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी प्रोत्साहित करती है, बहुत बहुत आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2014 at 1:26pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, सदैव की भाति इस बार भी आपकी प्रतिक्रिया प्रोत्साहित करती है, बहुत बहुत आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2014 at 1:25pm

सराहना हेतु आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 15, 2014 at 5:35pm

आदरणीय बागी जी

लघु-कथा का रुतबा कायम है i  यदि यह हकीकत है तो अकल्पनीय है i कैसे करूं नारी विमर्श i  कैसे कहूं - नारी तुम केवल श्रृद्धा हो  ! एक और  सामाजिक व्यंग्य  को उकेरती  आपकी लेखनी i  जय हो ! सादर i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service