(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
आदरनीय गणेश बागी जी , समय की नब्ज़ पर हाथ रख कर लघुकथा लिखी है. हार्दिक बधाई इस शानदार लघुकथा के लिए .
गज़ब व्यंग्य .... सधी हुई संतुलित लघुकथा
वाह ! .. :-))
का हो !.. ग़ज़ब-ग़ज़ब-ग़ज़ब.. !! ..
एह लघुकथा के विन्यास, तथ्य, कथ्य, संवाद आ उद्येश्य के प्रस्तुतीकरण में संतुलन देखि के मन खुश भ गइल बा..
बहुत-बहुत बधाई, गनेस भाई.. बहुत-बहुत बधाई.. !
आदरणीय गणेश भाईजी
फैशन की मारी, अति आधुनिक नारी , न होगी कभी अभागिन ।
पति बेचारा रहे न रहे , कोई फर्क न पड़े , रहती सदा सुहागिन ॥
लघु कथा पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें
बहुत बहुत आभार आदरणीया वंदना जी।
सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय सोमेश जी।
आदरणीया डॉ प्राची साहिबा, लघुकथा पर आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी प्रोत्साहित करती है, बहुत बहुत आभार।
आदरणीया राजेश कुमारी जी, सदैव की भाति इस बार भी आपकी प्रतिक्रिया प्रोत्साहित करती है, बहुत बहुत आभार।
सराहना हेतु आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।
आदरणीय बागी जी
लघु-कथा का रुतबा कायम है i यदि यह हकीकत है तो अकल्पनीय है i कैसे करूं नारी विमर्श i कैसे कहूं - नारी तुम केवल श्रृद्धा हो ! एक और सामाजिक व्यंग्य को उकेरती आपकी लेखनी i जय हो ! सादर i
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