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रामकिशन अपनी फसल से बहुत ज्यादा  प्यार करता था. पौधों को अपने बच्चों के जैसा समझता. खेतों की साफ़-सफाई, हर काम शुरू करने से पहले पूजा-पाठ, यहाँ तक की अपनी भावुकता के कारण नन्हें-नन्हें पौधों पर कीटनाशकों का छिडकाव भी नहीं करता था. उसे यही लगता था कि इन मासूमों पर जहर का इस्तेमाल कैसे करूँ..?   किन्तु ख़राब मौसम के कारण जन्मे कीट उसकी फसल को चट कर जाते. अपने हाथ कुछ न लगना और गाँव के लोगों द्वारा उसकी  हंसी उड़ाना , एक दिन उसे समझ आ गया. अब रामकिशन अपनी फसलों से आमदनी का भरपूर फायदा ले रहा है..

 

         जितेन्द्र ‘गीत’

  (मौलिक व् अप्रकाशित)    

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 7, 2014 at 10:22am

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया की हमेशा प्रतीक्षा रहती है, आदरणीय श्याम नारायण जी. स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 7, 2014 at 10:20am

जी आदरणीय बागी जी, आपका कहना एकदम सही है. पल भर का दर्द जीवन को सुरक्षित रखने के बड़ा काम आता है. आपकी उपस्थिति से हमेशा लेखनी का मनोबल बढता है, अपना स्नेह व् मार्गदर्शन हमेशा बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Shyam Narain Verma on November 6, 2014 at 11:41am

अति सुन्दर लघु कथा। बधाई।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 6, 2014 at 10:45am

बच्चों को भी स्वस्थ रखने हेतु दर्द युक्त टीका दिलाना ही पड़ता है, अच्छी लघुकथा, बधाई आदरणीय जितेंद्र जी।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 6, 2014 at 8:38am

आपका ह्रदय से आभारी हूँ, आदरणीय शुशील जी. स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 6, 2014 at 8:37am

आपका कहना एकदम उचित है आदरणीय डा.गोपाल जी. 'आवरण' से मेरा तात्पर्य एसी परत जो प्रतिकूल वातावरण में सुरक्षा दे. आपकी उपस्थिति व् स्नेहिल मार्गदर्शन से हमेशा मुझे मनोबल मिला है आपका ह्रदय से आभारी हूँ, सर. स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Sushil Sarna on November 5, 2014 at 6:25pm

एक सन्देश छुपाये सुंदर लघु कथा  .... हार्दिक बधाई  जितेन्द्र पस्टारिया जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 5, 2014 at 4:56pm

जीतू भैय्या

इस कहानी का शीर्षक  मेरी समझ से 'समझ' होना चाहिए था  जो कथा नायक को काफी नुक्सान उठाने के बाद आयी i सुन्दर कथा i बधाई i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 5, 2014 at 2:30pm
आपका हृदय से आभार, आदरणीय डा. विजय जी. सादर!
Comment by Dr. Vijai Shanker on November 5, 2014 at 1:00am

कथा में एक सन्देश है।  प्रिय जीतेन्द्र  जी , कथा अच्छी है , बधाई।  

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