2122 12 12 22
बदला बदला सा घर नज़र आया।
जब कभी मैं कही से घर आया।
बस तुझे देखती रही आँखें।
हर तरफ तू ही तू नज़र आया।
छोड़ कर कश्तियाँ किनारे पर।
बीच दरिया में डूब कर आया।
यूँ हज़ारो हैं ऐब तुझमे भी।
याद मुझको तेरा हुनर आया।
नींद गहरी हुई फिर आज "कमाल"।
ख्वाब उसका ही रात भर आया।
मौलिक एवम अप्रकाशित
केतन "कमाल"
Comment
कमाल् जी
बढ़िया कही गजल आपने i
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