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खुदा से पूछता ये बात कब तक।
कि सुधरेंगे मिरे हालात कब तक।।
मैं शर्मा हूँ कि वर्मा हूँ कि क्या हूँ
भला पूछोगे मेरी ज़ात कब तक।।
ज़माने कम से कम ये तो बता दे।
मुझे मिलती रहेगी मात कब तक।।
उजालों से हमेशा पूछता हूँ।
रहेगी ये अँधेरी रात कब तक।।
मेरे आकाश से होती रहेगी।
सुनो तेज़ाब की बरसात कब तक।।
वो देखेगा मुझे मुड कर कभी क्या।
वो समझेगा मिरे जज़्बात कब तक।।
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
खूबसूरत ग़ज़ल हुई है भाई केतन कमाल जी, दिली दाद हाज़िर है।
gumnaam pithoragarhi Ji sadar shukriya aapka
मैं शर्मा हूँ कि वर्मा हूँ कि क्या हूँ
भला पूछोगे मेरी ज़ात कब तक।।,,,,,,वाह
उजालों से हमेशा पूछता हूँ।
रहेगी ये अँधेरी रात कब तक।।
सुन्दर ग़ज़ल...बधाई.
Shukriya Mohtarma aapka Nawazish ke liye
खुदा से पूछता ये बात कब तक।
कि सुधरेंगे मिरे हालात कब तक।।
मैं शर्मा हूँ कि वर्मा हूँ कि क्या हूँ
भला पूछोगे मेरी ज़ात कब तक।।....लाजवाब ..बाकमाल ग़ज़ल हुयी है ..बधाई बधाई
Shukriya sabhi hazraat ka nawazish ke liye
केतन जी आप के सभी शेर बोलते हुए हैं उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई
लाजवाब , आदरणीय केतन भाई , सभी अश आर बढ़िया कहे हैं , हार्दिक बधाइयाँ |
वाह केतन भाई ..वाह "कमाल" का कमाल
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